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________________ अनमोल रत्न आसोज वदि ९ बंगले का सच्चा मालिक कौन? शास्त्रकार महाराज हमको समझा रहे हैं कि यह धर्म कितना अमूल्य रत्न है? इस दुर्लभ रत्न में अनन्त शक्तियाँ समाई हुई हैं। यह इस लोक परलोक दोनों को सुखी करता है। तुम्हारे द्वारा संग्रहीत इस सम्पत्ति का तुम इस लोक में भी अच्छी तरह भोग नहीं कर पाते हो, तब यह परलोक में कैसे साथ आएगी। लाखों रूपये खर्च करके बहुत बड़ा शानदार बंगला बनवाया, किन्तु व्यापार करते हुए तुम इस भव्य महल में कितने घण्टे रहने वाले हो और तुम्हारे घर में काम करने वाले नौकर इसमें कितने घण्टे रहने वाले हैं। इस भव्य महल का अधिक उपयोग कौन करता है? तुम या तुम्हारे नौकर-चाकर? मालिक कौन है? जरा गहराई से विचार करो तो सत्य समझ में आएगा। धर्म तुम्हें सच्ची समझ देगा। व्यवहारिक धर्म तो सभी लोग करते हैं। हिन्दु करते हैं, मुस्लिम करते हैं और ईसाई भी करते हैं किन्तु मुझे तुम्हे सत्य धर्म समझाना है। मनुष्य अनेक प्रकार के संकल्प करता रहता है। धन-प्राप्ति, महल बनाने के अथवा मोटरकारें रखने के संकल्प करता है। किन्तु सच्चे धर्म को समझने का संकल्प करने वाले कितने हैं? मुझे सच्चे धर्म को प्राप्त करने का संकल्प करने वाला तुम्हें बनाना है। सच्चा संकल्प होगा तो अपने आप तुम्हारी प्रगति होगी। मनुष्य किसी भी वस्तु का संकल्प करता है तो उसको प्राप्त करने के लिए आकाश-पाताल एक करता है अर्थात् रातदिन परिश्रम/मेहनत करता है। उसी प्रकार जो धर्म प्राप्ति का संकल्प करोगे तो तुम्हें सच्चा धर्म मिलकर ही रहेगा। धर्म किस प्रकार का रक्षण करता है, यह तीन मित्रों के रूपक द्वारा हम देख चुके हैं।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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