SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुवाणी-३ धर्म मित्र कैसा हो? से उबार लिया जबकि पहले प्राणप्रिय मित्र और वार-त्यौहार के मित्र ने मेरे साथ धोखा किया। जिसके पीछे मैंने अपनी जिन्दगी के मूल्यवान वर्ष बरबाद कर दिये और इस मित्र ने मुझे किस प्रकार बचा लिया? मैं पहले से ही इसकी संगत करता....। यह एक छोटा सा रूपक है, कहानी या वार्ता नहीं किन्तु हमारे जीवन को चेताने वाला रूपक है। जीवन का सार है। वह किस प्रकार? यह आगे देखेंगे। 11. अक्षुद्र, 2 रूपवान, 3. प्रकृति सौम्य, 4. लोकप्रिय, ! 15. अक्रूर, 6. पापभीरु, 7. अशठ, 8. दाक्षिण्य, 9. लज्जालु, - 10. दयालु, 11. मध्यस्थ, 12. गुणानुरागी, 13. सत्कथा, 14. सुपक्षयुक्त, 15. विशेषज्ञ, 16. सुदीर्घदर्शी, 17. वृद्धानुगत, 1 18. विनीत, 19. कृतज्ञ, 20. परहितचिन्तक, 21. लब्धलक्ष्य । आदि 21 गुणों से युक्त (सम्पन्न) व्यक्ति ही सच्चा धर्मी है।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy