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धर्म मित्र कैसा हो?
गुरुवाणी-३ झटकना है। यह मेरे से आगे कैसे है? इसको बराबर बताना है आदि। रात-दिन ऐसी ही विचारणाओं में फंसा रहता है किन्तु अन्त समय का साथी कौन है? सदा का साथी, सर्वदा हमारा रक्षण करने वाला, सर्वदा हमको सन्मार्ग पर ले जाने वाला कौन है? धर्म ही है। तुम्हारे पास चाहे जितनी अथाह सम्पत्ति हो। चाहे जितना वैभव हो वह इस लोक और परलोक में तनिक भी साथ देने वाला नहीं है। धर्म ही एक मात्र हमारा सच्चा मित्र है। शास्त्रों में एक रूपक आता है। तीन मित्रों का रूपक
एक सेठ था। उनके तीन मित्र थे। सेठ का राजा के साथ भी अच्छा सम्बन्ध था। पहले मित्र को सेठ प्राणों से भी ज्यादा अपना मानते थे। उसके पीछे वह अपना सबकुछ होंम देते थे। उस से अत्यंत प्रेम था। संक्षेप में जीव एक और शरीर अलग-अलग थे। दूसरे मित्र के साथ प्रगाड़ मित्रता नहीं थी परन्तु कोई प्रसंग होने पर वे मिलते थे। तीसरे मित्र के साथ औपचारिक संबंध था। कदाचित् वह रास्ते में मिल जाए तो मुस्कुरा देते थे।
___ एक समय इस सेठ के विरुद्ध किसी ने राजा के पास शिकायत की। हे - राजन् ! यह सेठ आपको मारने का षड्यन्त्र रच रहा है। आप सावधान रहियेगा। राजा कान के कच्चे होते हैं। यदि वे प्रसन्न होते हैं, तो निहाल कर देते हैं और नाराज होते हैं तो खत्म कर देते हैं। किसी भी प्रकार की जांच किए बिना ही दुष्ट मनुष्य की बात पर विश्वास करके राजा ने सेठ को पकड़ कर लाने का हुक्म दे दिया। इस बात की खबर सेठ को लग गई की मुझे पकड़ने के लिए शीघ्र ही राजपुरुष आने वाले हैं। क्या करूँ? यदि मैं भाग जाऊँ अथवा कही छुप जाऊँ तो बच जाऊँगा किन्तु कोई मददगार हो तो यह सम्भव है। मैं किसके पास जाऊँ? वह सेठ इस प्रकार का विचार करता ही है कि उसी समय उसे प्राण प्रियमित्र की याद आई। सेठ को पूर्ण विश्वास था कि यह मित्र मुझे बचा लेगा। पूर्ण विश्वास