SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुवाणी-३ धर्म मित्र कैसा हो? स्वयं जड़ होते हुए भी चेतन से भी बढ़कर है। जबकि मनुष्य तो चेतन स्वरूप है। प्रभु के वचन रूपी चोट खा-खाकर वह देव बन जाता है। पर वह चोट खाता ही नहीं। इसीलिए चेतन होने पर भी वह जड़ जैसा है। टांच खाकर पत्थर जड़ में से चेतन बनता है और मानव टांच नहीं खाकर चेतन में से जड़ बनता है। सुख का सच्चा मार्ग प्राप्त करने के लिए टांच खानी ही पड़ेगी। जैसा कि भगवान कहते हैं - 'क्रोध न कर'। भगवान के वचन रूपी यह चोट यदि हम सहन करेंगे तो देव जैसे बन जाएंगे, किन्तु हम तो उनके समक्ष प्रश्न पर प्रश्न करेंगे कि, नहीं, साहेब! क्रोध तो आ ही जाता है। इसके बिना काम नहीं चलता है। तो फिर ऐसी अवस्था में हम देव के स्थान पर दानव बनते जाते हैं । इन्सान के बदले शैतान बनते जाते हैं। आयुष्य बहुत कम है। थोड़े से ही वर्षों में हमें अपना मार्ग पकड़ना ही है। पानी का प्रवाह जिस प्रकार सड़-सड़ बह रहा है, यह आयुष्य भी उसी तरह बह रही है। जीवन के अधिकांश भाग के वर्ष हमारे युं ही बीत चुके हैं। अब जो तुम शेष जिन्दगी जी रहे हो, वह तो ब्याज के वर्ष हैं । ब्याज के वर्षों में भी हम सावधान नहीं हुए, तो बाद में नीचे की गतियों में चक्कर काटते रहेंगे। हमारा सदा का साथी किसी भी शास्त्र का पृष्ठ खोलिए वहाँ तुम्हें एक ही निष्कर्ष मिलेगा कि मानव भव दुर्लभ है। दुर्लभ होने पर भी अनन्त पुण्यरासी के बदले हमको वह मिल गया है, तो अब क्या करना? क्या भोग सुखों में उसको नष्ट कर देना है? जगत का अधिकांश वर्ग खाना-पीना, पहनना ओढ़ना आदि बाह्य पदार्थों में पड़ा हुआ है, तो कुछ लोग अन्दर के पदार्थों में क्रोध, मान, माया, ईर्ष्या, असूया, दम्भ, प्रसिद्धि, कीर्ति आदि के पीछे पड़ा हुआ है। कोई विचार करता है कि बंगला बनवाना है, मोटरकार लानी है, आभूषण घड़वाने है, यह लेना है, वह लेना है। कई जीवों के भीतर के पदार्थों में भटके हुए हैं। इसको नीचे गिराना है, इसके पास से
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy