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________________ ३४ आवश्यकता का संयम गुरुवाणी - ३ अवस्था का व्यक्ति चाहिए। सयाजीराव नाम के लड़के पर उनकी स्वीकृति के कलश का पानी डाला गया। वे चार भाई थे । सयाजीराव का नम्बर तीसरा था । उनको ले जाने के लिए उनके माता-पिता से याचना की। माता को खबर लगी कि मेरे पुत्र को ले जाने के लिए कोई महिला आई है । अधीर होकर [माथा कुटने लगी] रुदन करने लगी और क्रोध में आ गई। कहने लगी- क्या तेरे लिए मैंने पुत्र को पैदा किया है, मैं नहीं देती। किन्तु राज के सामने किसकी चलती है। बड़ा घाव सा हो गया, बड़ी मुश्किल से समझाकर उस पुत्र को लेकर आए। आज भी सयाजीराव की माता का कपाल में घाव पड़ा हुआ फोटो मालेगाँव से आगे जाते हुए कलवाणा गाँव में एक बंगला आता है, वहाँ मौजूद है । सयाजीराव को बड़ौदरा लेकर आए। अच्छे-अच्छे शिक्षकों को रखकर उनको पढ़ाया-लिखाया । वे खूब तेजस्वी निकले, साथ ही वे धर्म के प्रेमी भी थे। उन्होंने सन्तों को बुलाकर धर्म का अभ्यास किया । सयाजीराव का दुनिया में नाम और डंका बजता था, किन्तु वे भी अपनी स्त्री के सामने लाचार थे। उन्होंने दो बार विवाह किया था । पहली स्त्री से फतेहसिंह नाम का पुत्र हुआ था । उसके स्वर्गवास के पश्चात् दूसरी बार चिमनाबाई नाम की स्त्री के साथ विवाह किया । उसको भी एक लड़का था। राज्य के नियमानुसार राजगद्दी तो फतेहसिंह को ही मिलनी चाहिए किन्तु यह चिमनाबाई को तनिक भी पसंद नहीं था। सयाजीराव बाहर से महल में आते कि उसी समय चिमनाबाई रोना-धोना शुरू कर देती । फतेहसिंह को तो राज मिलेगा और मेरे लड़के को क्या मिलेगा। प्रतिदिन नई-नई मांग करने लगी । सयाजीराव उसके रातदिन के झगड़े से अत्यन्त त्रस्त हो गये । और त्रस्त होकर अपना अधिकांश समय स्वीट्जरलैण्ड में बीताने लगे। जीवन के अनेकों वर्ष वहाँ पर व्यतीत कर दिये । इसे प्रभुता का पगला कहें या पशुता का कदम । आज का मनुष्य पदार्थों के पीछे पागल बना हुआ है। इसी कारण वह भटक रहा है। यदि परमात्मा के पीछे पागल बनोगे तो ही संभल सकोगें ।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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