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________________ आवश्यकता का संयम गुरुवाणी-३ तो नीचे बैठकर ही खाना खाया है। अरबों साल ऐसे ही बितायें है। नीचे बैठकर खाने से शरीर के अमुक भागों को दबाव मिलता है, जिससे शरीर को अनेक प्रकार के फायदे होते हैं, किन्तु आज तो डायनिंग टेबल न हो तो हमारी जीवन शैली नीची गिनी जाती है। खाने में भी छुरी, काँटा और चम्मच । तुम्हे हाथ मिले हैं, क्या करने के लिए? हाथ में से तो अमृत झरता है। हाथ में तो सम्पूर्ण शरीर की विद्युत शक्ति रहती है। माँ अपने हाथ से ही पुत्र को ग्रास बनाकर खिलाती है क्योंकि उस हाथ में अमृत भरा हुआ होता है। महापुरुष भी आशीर्वाद देने के लिए सिर पर हाथ रखते हैं। सिर पर सुषुम्णा नाम की नाड़ी का द्वार है। उस पर हाथ रखते ही आशीर्वाद सीधा भीतर उतरता है जैसे - बरसात का पानी जमीन में उतर जाता है। इस युग के उक्त साधन वास्तव में देखा जाए तो मनुष्य को विनाश के मार्ग पर ले जाने वाले हैं। उत्पादन बढ़ाओ ने जो जीवन में शान्ति थी उसका भी हरण कर लिया है। वास्तव में तो उत्पादन बढ़ाओं के स्थान पर 'आवश्यकताएं घटाओ यह शिक्षा देने की आवश्यकता है। हमारे साधु जीवन में किसी प्रकार की आवश्यकता नहीं है इसीलिए हम निश्चिन्त हैं। निजानन्द में गोते लगा रहे हैं। जबकि तुम्हारे जीवन में तो प्रात:काल होते ही किसी न किसी वस्तु की आवश्यकता होती है और उसके पीछे दिमागी घुड़दौड़ प्रारम्भ होता है। इसीलिए तो शास्त्रकार कहते हैं कि तुम अपनी आवश्यकताएं कम करो, जीवन में शान्ति स्वतः ही चली आएगी। हमारे पास में शक्ति का अखूट खजाना है। आत्मा में ही आनन्द/सुख भरा हुआ है। पर हम भीतर की ओर झांकते भी नहीं। बाहर के पदार्थों के पास से सुख और आनन्द की भीख मांगा करते हैं। सारी जिन्दगी भीख मांगने पर भी, सुख अथवा आनन्द हमें नहीं मिलता। भीतर तो देखो? एक भिखारी था। किसी स्थान पर टाट बिछाकर भीख मांगा करता था। भीख मांगते-मांगते उसकी सारी जिन्दगी बीत गयी किन्तु उसे
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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