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________________ २६ धन नहीं, धर्म का संग्रह करो गुरुवाणी-३ वहाँ गायों के पालन की शिक्षा भी दी जाती है कि गाय किस प्रकार अधिक से अधिक दूध दे सके। स्वयं के दूध के भण्डार को सागर बनाने के स्वप्न देखते हुए यह भाई आस्ट्रेलिया जा रहे हैं। वहाँ जाने के लिए एयरपोर्ट पर तो जाना ही पड़ता है। घर से कार में निकले। मन में अनेक प्रकार के विचार घूम रहे थे। वहाँ जाना है और यह मुझे जानना है। एयरपोर्ट पहुँचने के पहले ही दुर्घटना हो गई। रास्ते में ही मरण हो गया। उनके सारे मनोरथ चूर-चूर हो गये और वे पाप की पोटली लेकर दूसरे लोक की ओर चले गये। इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं कि यह मृत्यु सबसे बड़ी दुर्घटना है और यह दुर्घटना जब होती है तो इस जिन्दगी का खेल ही खत्म हो जाता है। अतः जब तक, होने वाली यह दुर्घटना न हो उससे पूर्व ही चेत जाना चाहिए। आँख बन्द होने के बाद किसको मालुम कि अगले जन्म में यह जीवात्मा कहाँ जाएगी। संत कबीर कहते हैं - "इस तन-धन की कोन वडाई, देखत नयनों में मिट्टी मिलाई अपने खातर महल बनाया, आप ही जाकर जङ्गल सोया, हाड जले जैसे काष्ठ की मोली, बाल जले जैसे घास की पोली" स्वयं के लिये लाखों रूपये खर्च करके भले ही बंगला बनाया हो किन्तु चिरनिद्रा कहाँ लेंगे? जङ्गल में ही न! खूब मेवा-मिष्ठान्न खिलाखिलाकर इस शरीर को चाहे जितना भी हृष्ट-पुष्ट बनाया हो किन्तु इस शरीर का क्या करेंगे? जिस शरीर को पहले किसे छूने भी नहीं देता था उस शरीर को जब आग का लांपा लगाएंगे तो भी वह बोलेगा क्या? लाखों का प्रिय हो किन्तु जब उसका देह पतन होगा उस समय उस शरीर को चाहे जैसे काटो या मारो.... क्या वह बोलता है? दूसरे धन भी देखतेदेखते मिट्टी रूप हो जाने वाले हैं। धन की जल समाधि - दो भाईयों का दृष्टान्त ___ मारवाड़ के किसी गाँव में दो भाई रहते थे। माता-पिता का छोटी उम्र में ही स्वर्गवास हो गया था। दोनों भाई एक-दूसरे के सहयोग से बड़े
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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