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गुरुवाणी-३
धन नहीं, धर्म का संग्रह करो कम पड़ती है। इस देह को नित्य मान बैठा है इसीलिए ही न! और विनाशशील यह ऐश्वर्य भी हमको अविनाशी लगता है। रात-दिन, पुण्यपाप, नीति-अनीति का विचार किए बिना ही कमाई करता जाता है। बड़े-बड़े कारखाने और बड़े-बड़े महल बनवाकर तथा उसमें एकरूप होकर पापों को इकट्ठा करता रहता है। उसको यह खबर नहीं है कि जब यह आत्मा देह से निकल जाएगी उस समय उसी हवेली में से तुझे जल्दी से जल्दी निकालने की तैयारी करेंगे। जिसे तु अपना समझता है भले ही वे तेरी पत्नी हो, पुत्र हो कोई घर में रखना नहीं चाहेगा। मृत्यु की तलवार सिर पर लटक रही है। मानव बड़ी-बड़ी आशाओं के साथ महल बनवाता है, किन्तु जब मृत्यु आती है तो वह सभी महलों को डुबा देती है। पानी के पैसे
दूध सागर डेयरी महेसाणा के मालिक मानसिंह चौधरी - समय इतना इतना निम्न स्तर का आ गया है कि पहले दूध बेचना यह हल्के से हल्का काम गिना जाता था। रबारी भी दूध बेचता नहीं था। आज तो छाछ भी बेची जाती है। अरे, छाछ ही नहीं इस देश में अब तो पानी भी बेचा जाता है। एक लीटर बिस्लरी (पानी) की बोतल के १५/- रूपये। ऐसा कहा जाता है जहाँ घी और दूध की नदियाँ बहती थी, वहाँ आज पानी भी पैसे से मिलता है। उस जमाने में दूध या छाछ को लेने या देने में हलकाई नहीं लगती थी। सूर्य प्रकाश देता है यह उसका स्वभाव है उसी प्रकार मनुष्य आपस में दूध या छाछ लेते देते थे तो इसमें कोई उपकार या हल्कापन नहीं था। डेयरी के मालिक चारों ओर के ग्रामों से दूध खरीदते हैं.... तालाब भरते हैं....आज तो इंजेक्शन अथवा मशीन से निर्दयतापूर्वक दूध खेंचकर निकाला जाता है। गायों का खूब शोषण हो रहा है। यह चौधरीजी दूध का अधिक उत्पादन हो, इसके लिए आस्ट्रेलिया जाने के लिये निकले। आस्ट्रेलिया में विशाल-विशाल स्थान खाली पड़े हुए हैं।