________________
गुरुवाणी-३
काया का संयम आया हूँ। अन्त में अभयकुमार थककर/परेशान होकर उसको छोड़ देता है। रौहिणेय घर आकर विचार करता है कि अनिच्छा से सुनी हुई भगवान की वाणी ने ही मुझे मरण से बचाया है। बस केवल यही मार्ग सच्चा है। प्रात:काल होते ही भगवान् के पास जाकर दीक्षा ग्रहण करूँगा। भगवान् के पास जाने के पहले वह श्रेणिक महाराजा के पास जाता है और सत्य स्थिति का वर्णन करता है। सबूत के तौर पर जमीन में गाड़ा हुआ धन भी दिखाता है और अन्त में राजा से दीक्षा की आज्ञा मांगता है। स्वयं श्रेणिक महाराजा उसका दीक्षा महोत्सव करते हैं । दीक्षा के पश्चात् वह कैवल्यज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में जाता है। ये दोनों कान भगवान् की और संत पुरूषों की वाणी सुनने के लिये ही है। अतः इनका सदुपयोग करो। यह हितकर वाणी ही तुमको बचा सकेगी।
00
चिंतन रहित ज्ञान पानी समान।
मनन, चिंतन सहित ज्ञान दूध समान। तन्मयता से प्राप्त किया हुआ ज्ञान अमृत समान।