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काया का संयम
गुरुवाणी-३ देवता अनिमेष नयन वाले होते हैं अर्थात् पलक नहीं झपकते हैं और भूमि का स्पर्श नहीं करते हैं। बस ये दो शब्द ही उसके कानों में पड़े, कांटे को निकालकर तत्काल ही उसने अंगुली कान में डाल दी। यह जो दो शब्द अनिच्छा से कान में प्रवेश कर गये थे, उनको भूलने के लिए बहुत प्रयत्न करता है, किन्तु वह भूल नहीं पाता बल्कि वे प्रगाढ़ रूप से उसके हृदय में उतर जाते हैं। यादगार बन जाते हैं। अभयकुमार की निष्फलता
इस तरफ सारे नगर में चोरों के द्वारा चोरियों के माध्यम लूट चल रही थी। नगर में चारों तरफ चोरों का आतंक था। कोई भी चोर को पकड़ नहीं पाता था। मन्त्री अभयकुमार इस चुनौती को स्वीकार करता है। रौहिणेय चोर को पकड़ता है, किन्तु जब तक वास्तविक प्रमाण न मिले तब तक उसको सजा कैसे दी जा सकती है? अभय कुमार बुद्धि चातुर्य से काम लेता है। देवलोक जैसा वातावरण पैदा करता है। रौहिणेय को नशे में धुत करके वहाँ सुलाता है। वह जागता है, उस समय देवता उससे पूछते है, कि तुमने मनुष्य लोक में कौनसे सत्कार्य किये हैं और कौनसे दुष्कृत कार्य किए है, वह कहो। रौहिणेय विचार में पड़ जाता है । यह सब क्या नाटक है? क्या मैंने सचमुच में देवलोक में जन्म लिया है? चारों तरफ देखता है। अनिच्छा से कानों में पड़े हुए भगवान् के वे शब्द याद आते हैं कि देवों की आँखों के पलक झपकते नहीं हैं और देव भूमि का स्पर्श नहीं करते हैं। उसने देखा कि ये समस्त देव-देवियों के नेत्र पलक झपक रहे हैं और उनके पैर जमीन को स्पर्श कर रहे हैं। वह स्वयं बहुत ही चालाक
और धूर्त था। समझ गया कि यह तो मुझे पकड़ने के लिए अभय कुमार का षड्यंत्र है। पुछने पर चालाकी से कहने लगा कि मैंने तो खूब दान दिया है। परोपकार के कार्य किए है। कोई गर्हणीय/नीच कार्य किया ही नहीं है। सामने वाले मानव उससे घूमा-फिरा कर पूछते हैं किन्तु वह तो एक ही बात कहता है कि मैंने अच्छे कार्य किए हैं, इसीलिए देवलोक में