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________________ काया का संयम १९ गुरुवाणी - ३ लिए आई हुई नटमण्डली के खेलों को देखते-देखते रूप सुन्दरी के समान नटनी को देखकर अपना आपा खो बैठता है। माता-पिता के समक्ष नटनी के साथ विवाह करने का अपना विचार रखता है । उसके यह विचार सुनते ही माता-पिता को जोर का आघात लगता है । पुत्र को अनेक प्रकार से समझाते हैं - पुत्र ! कहाँ हमारा कुल और कहाँ ग्रामोग्राम घूमने वाले इन नटवों का कुल? हम कितनी आशाओं के मीनारे तुम्हारे लिये चुनते रहे । इस नटनी की अपेक्षा अधिक रूपवती सेठ कन्याओं के साथ तुम्हारा विवाह कर देंगे। हे वत्स, इन विचारों का तू त्याग कर दे, किन्तु आँखों के असंयम के कारण पतन के रास्ते जाने वाले इलाचीकुमार को मातापिता के मार्मिक दुःखों को देखने की कहाँ फुर्सत थी ? आखिर एक नटनी नारी के कारण माता-पिता, धन-वैभव, इज्जत और यश आदि को छोड़कर और समस्त सुखों का त्याग कर स्वयं नट बन जाता है । ग्रामग्राम घूमकर लोगों का मनोरंजन करता है । रस्से पर ही केवलज्ञान एक दिन इलाचीकुमार किसी नगर में जाता है। वहाँ के राजा को अपना खेल बताता है । राजा और रानी उत्सुकता के साथ इलाची का खेल देख रहें हैं। जान को जोखिम में डालकर इलाची रस्से के ऊपर नाच रहा है। नीचे नटनी ढोल बजा रही है। राजा की दृष्टि इलाची के नृत्य के स्थान पर नटनी के रूप-सौन्दर्य पर पड़ती है । नटनी को देखकर राजा उस पर मोहित हो जाता है । राजा के मन में दूषित विचार जन्म लेते हैं। वह सोचता है कि इलाचीकुमार रस्से पर नाचता हुआ थक जाए, नीचे गिर पड़े और मर जाए, तभी यह नटनी मुझे मिल सकती है। इन कुत्सित विचारों के कारण ही वह इलाचीकुमार को बहाना बनाकर ईनाम नहीं देता है और पुनः-पुन: खेल दिखाने के लिये कहता है । इलाची ईनाम की आशा से बारम्बार बाँस के रस्से पर खेल करता है । बाँस के रस्से पर नाचते-नाचते ।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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