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________________ काया का संयम आसोज वदि ५ समाधि कैसे मिले? विश्व-कल्याण के लिये परम कृपालु परमात्मा धर्म का मङ्गलमय मार्ग बता रहे हैं। प्रत्येक प्राणी को सुख समाधि पूर्वक कैसे जीवन जिएं इसकी इच्छा है । वही मार्ग भगवान् हमको बता रहे हैं । सुख और समाधि चाहिए तो मङ्गल स्वरूप धर्म को जानकर उसका आचरण करना पड़ेगा। दूसरे का अहित और उसका चिन्तन करने वाले को कदापि समाधि नहीं मिलती है। लूट-मार कर एकत्रित की हुई सम्पत्ति कभी भी समाधि नहीं दे सकती। घर में अशांति, चिन्ता और आपत्तियाँ लाती है। त्याग योग्य और ग्रहण योग्य क्या वस्तुएँ हैं इसको समझने के लिये धर्म समझना होगा। धर्म कैसा हो? धर्म अहिंसा से युक्त होना चाहिए। वास्तविक अहिंसा का आचरण कब कर सकेंगे? जब जीवन में मन, वचन और काया का संयम होगा तभी आचरण कर सकेंगे। मन और वचन के संयम पर विचार कर चुके हैं अब काया का संयम अर्थात् पांच इन्द्रियों के संयम पर विचार करते हैं। आँख का असंयम - इलाचीकुमार आँख के असंयम से टी.वी. द्वारा प्रसारित होने वाले खराब दृश्य जीवन में स्थान बना लेते हैं। खराब से खराब दृश्यों को सासु और बहू, माँ-बाप और सन्तानें सब लोग साथ में बैठकर देखते हैं। एक बार ही नहीं अनेकों बार देखते हैं । देखने पर भी विकार उत्पन्न न हो यह आश्चर्य की बात ही गिनी जाएगी। आँख के असंयम के कारण इलाचीकुमार अपने पथ से भटक गए। धनदत्त सेठ ने इला माता की आराधना कर बड़ी कठिनता से इस पुत्र को प्राप्त किया था। वही पुत्र खेल क्रीड़ा करने के
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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