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गुरुवाणी-३
वाणी का संयम सुधरने का काम है, आज की फैशन है। यह कहने वाले दूसरी जाती के व्यक्ति नहीं थे किन्तु जैन परिवार के ही पुत्र थे ! जो कुटुम्ब शराब के नाम से दूर भागते थे वे ही कुटुम्ब आज ऐसे नशीले पदार्थों में डूब रहे हैं। जैन संस्कृति नष्ट हो रही है। हमारे जैसे साधु संतो के हृदय इन बातों को सुनकर आघात का अनुभव करते हैं किन्तु जहाँ आकाश फटे वहाँ पैबन्द कहाँ लगाएँ? संत कबीरदास ने भी कहा है - किन-किन को समझाईये कूवे भांग पड़ी।
अर्थात् किसको समझाएं, एक मनुष्य ने भांग (नशीला पदार्थ) पी हो तो उसका नशा दूर करने का प्रयत्न किया जाए किन्तु कुंए के पानी में ही भांग डाल दी गई है। सब लोग व्यसन युक्त बन गये हैं किसको समझाएं?
आश्चर्य की बात - कोई भी मनुष्य, जब उसके ऊपर बाहरी आक्रमण होता है, तो बलवान का आश्रय लेता है, किन्तु जब उस पर काम का आक्रमण होता है, तब अबला का सहारा लेता है।