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वाणी का संयम
गुरुवाणी-३ के जीवन बरबाद हो चुके हैं। बात-बात में उद्वलित/झुंझलाहट कर किसी के मर्म स्थान पर वाणी के प्रहार द्वारा सन्मुख व्यक्ति को मृत प्रायः कर देते हैं। वाणी के असंयम के सामने सहनशीलता भी नहीं रहती है। इसी कारण से तनिक भी प्रतिकूल शब्द सुनते ही अथवा मनोवांछित कार्य न होने पर संयम के अभाव में आपे से बाहर होकर दुर्लभ मानव भव को पल भर में होंम देते हैं। वाणी का दूसरा नाम है सरस्वती । सरस्वती तो माता है, इसका अपव्यय नहीं होना चाहिए और इसकी साधना करनी चाहिए। महाभारत में आता है कि आवाज बिना ही जो मोक्ष मिलता हो तो आवाज करने की आवश्यकता ही नहीं है। अर्थात् वाणी का अपव्यय नहीं करना चाहिए। मौन में अत्यधिक शक्ति है। वह अनेक क्लेशों से बचाती है, किन्तु इसको सुधारने के लिए हमने क्या अभ्यास किया है? यदि जिह्वा पर संयम रखा जाए तो दो लाभ है:- १. अनेक रोग खत्म हो जाते है और २. अनेक क्लेशों से बचा जा सकता है। २७ वर्ष तक एक ही पाठ.....
किसी तत्त्वज्ञानी के पास में एक भाई तत्त्व जानने के लिए आया। तत्त्वज्ञानी ने उसे पहला पाठ दिया कि जीभ पर संयम रखो। बस इतना ही पाठ लेकर वह भाई चला गया। दूसरे दिन तत्त्वज्ञानी ने उसकी, आने के समय पर प्रतीक्षा की किन्तु वह भाई नहीं आया। इससे उस तत्त्वज्ञानी को ऐसा लगा की शायद वह व्यक्ति किसी कारण से आज नहीं आया हो, कल आएगा। तीसरे दिन भी पाठ के समय तत्त्वज्ञानी उसकी राह देखता रहा किन्तु वह नहीं आया। इस प्रकार बहुत दिवसों तक राह देखने पर भी वह भाई दूसरी बार पाठ लेने के लिए नहीं आया। तत्त्वज्ञानी ने मन में विचार किया कि कदाचित् उसको मैंने जो पाठ दिया था वह रूचिकर न लगा हो। इस बात को अनेक वर्ष बीत गये। एक दिन उस तत्त्वज्ञानी को एक मन्दिर की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए वह भाई मिल गया। पहचान लिया, पूछा - भाई, तुम तो दूसरी बार पाठ लेने के लिए आए