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वाणी का संयम
आसोज वदि ४
धर्म उत्कृष्ट मङ्गल है....
परमकृपालु परमात्मा ने मानव जीवन की सार्थकता के लिए तथा हमारे हित के लिए करुणा से अनेक बातें बताई है। सभी जीवों को जीने की इच्छा है और हम कैसे सुखी रहें और दु:ख हमारे पास ही न आए। इच्छा होना यह अलग बात है और इच्छा का पूर्ण होना यह अलग बात है। इच्छा.तो प्रतिदिन नई-नई पैदा होती है, किन्तु सफल तो कुछ ही बन पाती है। इच्छाओं को सफल करने के लिए प्रभु ने धर्म का मङ्गलमय मार्ग बताया है। धर्म स्वयं ही उत्कृष्ट मङ्गल है, इसमें कोई दो मत नहीं है किन्तु आज हजारों कार्यक्रम धर्म के नाम पर चल रहे हैं। आज अनेक पंथ इस धर्म के मार्ग में है। इससे मनुष्य भ्रम में पड़ जाता है कि धर्म किसे कहा जाए? कौनसे मार्ग पर चलना चाहिए? सर्वप्रथम अहिंसा को धर्म का लक्षण कहा गया है, अतः जो जीवन में अहिंसा आएगी तो हमें धर्म में भी सफलता मिलेगी। अहिंसा के स्वरूप को हम पूर्व में समझ चुके हैं। वह कैसे प्राप्त होगी यह हमें देखना है। सर्वप्रथम अहिंसा-पालन के लिए संयम जरूरी है। मन के संयम पर हम अवलोकन कर चुके हैं। मन का असंयम ही अनेक आत्माओं को भ्रष्ट कर चुका है। मन पवन के समान कहीं का कहीं भटक रहा है। उसको यदि वश में नहीं रखा तो सच्चे अर्थ में अहिंसा का पालन नहीं हो सकेगा। मन शुद्ध होगा तभी अहिंसा का पालन कर सकेंगे। स्टीयरिंग पर काबू न रहे तो......
दूसरा संयम है वाणी का संयम। हमारा वाणी पर नियंत्रण (कन्ट्रोल) पूर्ण रूप से चला गया है। वाणी के असंयम के कारण अनेकों