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संयम से युक्त धर्म
गुरुवाणी-३ पहुँची है? आप क्यों नहीं बोलते है? आपको यदि बुरा लगा है, तो हम वापस चले जाएँ। उसी क्षण गुरु महाराज ने आँखें खोली और बोले - अरे ! मैं तो तुम्हारे प्रश्न का ही उत्तर दे रहा था, क्या तुम लोग कुछ नहीं समझे । मेरी यह ध्यानस्थ मुद्रा ही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। शिष्यों ने पूछा - किस प्रकार? गुरु ने कहा - भाईयों! आत्म निरीक्षण के लिए दृष्टि को हृदय में उतार कर बैठ जाओ, यही सच्चा तत्त्वज्ञान है । भगवान् की प्रतिमा हमको यही कह रही है कि अब चारों तरफ से अपने वृत्तियों को समेट कर भीतर दृष्टि डालकर बैठ जाओ। सच्ची शान्ति तुम्हारी आत्मा में ही है। इस प्रकार हम आत्म-निरीक्षण करेंगे, तो ही मन पर संयम हो सकेगा।
जन्म की एक भूल मनुष्य को जीवन से बांधती है
और जीवन जीते हुए जगत का जंजाल प्रतिदिन बांधता है
यहाँ के लोगों का भला क्या कहना यहाँ के लोग मुर्दे को भी कस कर बांधते है।