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संयम से युक्त गुरुवाणी - ३ कौन है? कहाँ है? इसका उन्हें ज्ञान न रहा। मन ही मन में भाला और तीर चलाने लगे। इसको मारा, इसको अधमरा किया इस प्रकार एक-एक योद्धाओं को मन से ही मारने लगे। उनका मन ही मन में युद्ध चल रहा था। उसी समय श्रेणिक राजा वहाँ से निकलते हैं। युवान राजर्षि को एवं उनकी उग्र तपश्चर्या को देखकर नमन करते हैं । समवसरण में भगवान् को वन्दन कर उनके पास बैठते हैं, देशना सुनते हैं और देशना के अन्त में महाराजा श्रेणिक भगवान् से पूछते हैं - भगवन्! आज मार्ग में आते हुए युवक साधु को आतापना लेते हुए देखा था, वे यदि इसी समय कालधर्म को प्राप्त हो जाएं तो कहाँ जाएंगे? भगवान् उत्तर देते हैं - हे राजन् ! वह महर्षि इसी समय कालधर्म को प्राप्त हो जाए तो सातवें नरक में जाएगा। श्रेणिक महाराजा तो भगवान् के ये शब्द सुनकर एकदम दिङ्मूढ़ से हो गए। क्या ऐसे उग्र तपस्वी और सातवाँ नरक ? यह कैसे हो सकता है? भगवान् की वाणी असत्य नहीं होती है। मन की दुविधा को दूर करने के लिए कुछ समय के पश्चात् फिर वही प्रश्न दोहराया - भगवन् ! इस समय महात्मा काल करे तो कहाँ जाएंगे? भगवान् कहते हैं - अनुत्तर विमान में जाएंगे । भगवान् के उक्त वचन सुनकर श्रेणिक राजा दुविधा में पड़ गया । सोचने लगे कि कुछ समय पहले तो भगवान् ने सातवाँ नरक बतलाया था और इस समय देवलोक का अंतिम स्थान बता रहे हैं । इस समय अन्तिम देवलोक में जहाँ एक तरफ सुख की पराकाष्ठा है वहीं दूसरी ओर नरक में दुःख की पराकाष्ठा है। इस प्रकार श्रेणिक राजा दुविधा में विचार ग्रस्त हैं, उसी समय देवदुंदुभि सुनाई देती है। श्रेणिक राजा पूछते हैं - भगवन् ! यह क्या? देवदुंदुभि क्यों बजी ? भगवान् कहते हैं - हे राजन् ! उस महात्मा को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। श्रेणिक राजा भगवान् से पूछते हैं भगवन्, आपका दुविधा भरा यह उत्तर मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आप विस्तार से इस महात्मा का चरित्र मुझे कहिए । भगवान् कहते हैं हे श्रेणिक, जब तुम वहाँ से निकले उस समय तुम्हारे सैनिकों के शब्दों
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