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धर्म कैसा
गुरुवाणी - ३
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सकते, किन्तु मन में तो उस दुःख की प्रतिध्वनि पड़नी ही चाहिए। पड़ोस में किसी जवान लड़के की मौत हुई हो और हम दोपहर को भोजन के समय आम का स्वाद लें तो कैसा लगेगा? कितनी कठोरता होगी? हम उसे जीवित तो नहीं कर सकते, किन्तु रुदन करते हुए उसके कुटुम्ब को देखकर हमारा हृदय भी कम्पित होना चाहिए न? उन्हें आश्वासन देने के लिए हमारे पास दो मधुर शब्द तो चाहिए। उस समय हम यदि आम नहीं खाएंगे तो हमारा कुछ बिगड़ नहीं जाएगा। आज मनुष्य मनुष्य का दुश्मन है। उसके हृदय में बहता हुआ करुणा का झरना बन्द हो गया है। कुछ विरल आत्माएं अवश्य ही होती है किन्तु करुणा तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अवश्य होनी चाहिए । इसी करुणा के खातिर ही भगवान् नेमिनाथ ने विवाह करना अस्वीकार किया । करुणा उत्पन्न होगी तो ही वास्तविक अहिंसा का आचरण कर सकेंगे ।
४. मध्यस्थ भावना
चौथी भावना है मध्यस्थ भावना - उपेक्षा... अच्छे काम करने वालों की भी लोग अवहेलना करते हैं, मजाक उड़ाते हैं, अनेक प्रकार की अफवाहें फैलाते हैं । वहाँ क्या करना? तो ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि उपेक्षा करनी चाहिए। ऐसे मनुष्य भी जगत् में होते हैं। तो उसके ऊपर दया भाव रखते हुए विचार करना चाहिए कि बेचारा मेरे कारण कर्मों को बांधकर दुर्गति में भटकेगा । कदम-कदम पर समाधान करोंगे तभी तुम्हारा संसार सुखपूर्वक चल सकता है। कोई व्यक्ति हमारे लिए कुछ भी बोले उस समय हम विचार करते हैं कि इसने ऐसा कैसे बोला ? इसकी खबर ले लूं? इन विचारों के स्थान पर यह सोचना चाहिए कि उसने भले ही बोला हो किन्तु हमें तो किसी का भला ही करना है न? किसी बात को दूसरी तरफ मोड़ना अपने ही हाथ की बात है। ये चार भावनाएं हमारे हृदय में आएगी तभी हम अहिंसा को पूर्ण रूप से सिद्ध कर सकेंगे ।