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________________ दीपावली पर्व २४२ गुरुवाणी - ३ भी हमारा भगवान् महावीर के प्रति कितना अनुराग है। सुना है कि आज के दिन भगवान् महावीर के निर्वाण के समय छत्र घूमता है। लोग चौविहार छट्ट की तपश्चर्या भी करते हैं । उस समय पुण्यपाल राजा भगवान को वन्दन करने के लिए जाते हैं । उनको आठ स्वप्न आए थे। उन स्वप्नों का फल जानने के लिए स्वप्नों को कहकर उसका फल पूछते हैं। पुण्यपाल राजा के आठ स्वप्न १. पहला स्वप्न - पहले स्वप्न में मैंने भग्न और टूटी हुई तथा जीर्णशीर्ण हस्तिशाला में हाथी को खड़ा देखा। भगवान् कहते हैं. हीनकाल आ रहा है। जीर्ण हस्तिशाला के समान गृहस्थाश्रम होगा । भग्न और टूटी हुई किसी पाठशाला के मकान के समान गृहस्थ का जीवन होगा । उसमें गृहस्थ रूपी हाथी पड़ा रहेगा। वैसे तो हाथी की हस्तिशाला बहुत भव्य होती है, वह जीर्णशाला में नहीं रहता, किन्तु गृहस्थी रूपी हाथी ऐसी जीर्णशाला में दुःख को सुख मानकर पड़ा रहेगा। साधु सन्त चाहे जितना भी उपदेश दें किन्तु संसार की ओर विरक्ति जागृत नहीं होगी। आज हम देखते हैं न ! भगवान् का वचन अक्षरश: सत्य है। संसारदावानलदाहनीरं रोज बोलते हैं किन्तु संसार दावानल के समान लगता है क्या! धर्मस्थानों-उपाश्रयों में जाना अच्छा लगता है क्या? स्वयं की छोटी सी कोठड़ी में जहाँ एक ओर चूहे चू चू करते हों.... दूसरी ओर लड़के रो रहे हों.... गन्ध देने वाली रजाई हो तब भी उसी में सोना पसंद करते हैं। यदि उन्हें कहें कि भाई ! रात्रि - पौषध करो.... तो स्पष्टतः ना कह देते हैं.... ऐसे विशाल उपाश्रय में उनको नींद नहीं आती है.... करोड़पति लोग भी हमारे चरणों में मस्तक रखकर रोते हैं। साधु जीवन स्वीकार करने पर सभी प्रश्न एक साथ ही समाप्त हो जाएंगे, किन्तु स्वीकार करना अच्छा नहीं लगता। पाँचवे आरे में संसार का स्वरूप कैसा होगा यह इस स्वप्न से सूचित होता है ।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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