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गुरुवाणी-३
दीपावली पर्व २. दूसरा स्वप्न - दूसरे स्वप्न में चंचल उछलकूद करता हुआ बन्दर देखा। भगवान कहते हैं - पाँचवें आरे में जीव चंचल होंगे, ज्ञान और क्रिया में उनका आदर भाव नहीं होगा, किसी भी प्रवृत्ति में उनका मन स्थिर नहीं होगा। आज हम देखते हैं कि व्याख्यान सुनते हैं तो कब व्याख्यान पूरा होगा इसकी राह देखते हैं। दादा की यात्रा करने जाएंगे तो सुबह ऊपर चढ़ेंगे दोपहर को उतरेंगे और सांझ को भाग जाएंगे। मन्दिर में भी पूजा के समय स्थिरता कहाँ होती है। इसी चंचलता के कारण स्थिर चित्त से आराधना नहीं कर सकते। भगवान् महावीर का मार्ग सीधासाधा होने पर भी चंचलता के कारण भिन्न-भिन्न प्ररुपणाओं से किसी भी विपरीत मार्ग पर चला जाता है।
३. तीसरा स्वज - तीसरे स्वप्न में दूध झरने वाला वृक्ष कांटो से घिरा हुआ देखा। भगवान् कहते हैं कि शासन की उन्नति करने वाले, ज्ञान और क्रिया की भक्ति करने वाले, सात क्षेत्रों में द्रव्य का व्यय करने वाले गुणवान ऐसे गृहस्थ, संयमी साधुओं को वेशधारी, अहंकारी और गुणद्वेषि मनुष्य चारो ओर से घेरे रहेंगे। दूध झरता वृक्ष जैसे कांटो से घेरा रहता है, वैसे ही शासन के अच्छे-अच्छे मनुष्य भी कंटक के समान मनुष्यों से घिरे रहेंगे।
___आज हम देखते हैं कि अच्छे मनुष्यों पर विघ्न करने वाले अनेक लोग हैं। अच्छे मनुष्य किनारे पड़ गए हैं। पाखण्डी और दम्भी लोग पूजे जाते हैं। अच्छे मनुष्यों को भी विपरीत मार्ग पर ले जाने वाले उसके दिमाग को भ्रमित करने वाले सम्प्रदाय और मनुष्यों का बोलबाला है। एक सत्य घटनाः
सावरकुंडला के निवासी और घाटकोपर में रहने वाले एक पक्के महाश्रावक थे। ये बहुत वर्षों पहले की बात है, उस समय में इतने उपाश्रय या सुविधाएं नहीं थी.... यह श्रावक साधुजनों के उपयोगी प्रत्येक वस्तुएं, पाट, पाटला, ज्ञान के साधन, पुस्तकों के भण्डार और ज्ञान-दर्शन-चारित्र के समस्त उपकरण अपने यहाँ रखते थे। स्वयं के गाँव सावरकुंडला में