SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपावली पर्व कार्तिक वदी अमावस प्रत्येक वर्ष का पहला पर्व याने प्रारम्भ होने वाला वर्ष (नया साल) और अन्तिम पर्व दीपावली। जैन धर्म के झण्डे को लहराने वाला.... अनेक अनार्यों को धर्म में लाने वाला और उनको स्थिर करने के लिए अनेक मन्दिर तथा अनेक जिनबिम्बों को भराने वाला सम्राट सम्प्रति आर्य स्थूलिभद्र महाराज के शिष्य आर्य सुहस्तिसूरि महाराज को पूछते हैं कि भगवन्, पर्युषण आदि पर्व तो बराबर है किन्तु दीवाली पर्व कैसे बना? आचार्य भगवन् कहते हैं सुनो - घोर उपसर्गों को सहन करने के बाद केवलज्ञान प्राप्त कर प्रभु तीस वर्ष तक विचरण करते रहे। अपना अन्तिम समय निकट जानकर पावापुरी में हस्तिपाल राजा की सभा में चातुर्मास रहे थे। वहाँ भगवान् अखण्ड १६ प्रहर देशना देते थे। अन्तिम दिनों में मनुष्य का शरीर भी शिथिल हो जाता है फिर भी परोपकारिता के गुण को लेकर भगवान् अखण्ड वाणी की धारा बरसाते हैं। आज जिस प्रकार लोकशाही है उसी प्रकार उस समय में गणतन्त्र चलता था। गणतन्त्र के बड़े-बड़े राजाओं की सभा जुड़ती है। १८ देश के राजा वहाँ आए हुए थे। उनको सूचना मिली कि भगवान् देशना दे रहे हैं। सभी राजागण बैठक छोड़कर भगवान् की देशना सुनने के लिए आते हैं। भगवान की वाणी में इतना माधुर्य होता है कि उठने का मन ही नहीं होता। १६ प्रहर तक एक स्थान पर बैठना कोई सहज नहीं है। तुम्हें तो एक सामायिक में भी बैठने पर कंटाला आता है। कब पूरी हो इसकी राह देखते हों। यह तो भगवान् की वाणी का प्रभाव था। भगवान को चौविहार छट्ठ की तपश्चर्या थी। पावापुरी में आज भी हजारों लोग सम्मिलित होकर भगवान् की चरण पादुका के सामने सारी रात बैठकर जाप करते हैं। यह देखने पर यही प्रतीत होता है कि आज
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy