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________________ २३३ गुरुवाणी-३ परहित-चिन्तक हुआ ससुरजी इन चारों की बातों को सुनता है। चौथी बहू का कथन उसको खटक गया.... उसने विचार किया कि परिश्रम पूर्वक हम जो कमा रहें हैं, वह क्या किसी को देने के लिए थोड़ी है? इस बहू को तो अच्छी तरह से शिक्षा देनी होगी.... इस प्रकार बातें करते-करते बवंडर थमने पर चारों बहूएं खेत की ओर चली.... ससुरजी भी खेत पहुँच गये। ससुरजी ने घर आकर, बड़ी बहू को कपड़े प्यारे थे इसलिए अच्छे-अच्छे कपड़े लाकर उसको दिए। जिसको स्वर्ण प्रिय था, उसको अच्छे आभूषण घड़वा कर दिए। तीसरी बहू को खाना-पीना प्यारा था, उसको अच्छी-अच्छी मिठाईयाँ लाकर दी। चौथी बहू को कुछ भी नहीं दिया। घर में उसका तिरस्कार होने लगा। सारे दिन काम करने पर भी उसको कोई मान-सन्मान नहीं.... अच्छा खाने को भी नहीं देते थे। यह बहू मन ही मन में आकूल-व्याकूल होने लगी.... उसने विचार किया कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है, फिर भी मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों? ऐसा लगता है कि उस दिन बड़ के नीचे हमारी बातों को ससुरजी ने भी सुन ली है, किन्तु मैंने इसमें गलत क्या कहा था। सबको इच्छानुसार वस्तुएं मिल गई, मेरी ही उपेक्षा हो रही है। उसने अपने पति से बात की। पति को भी ऐसा लगा कि इसके विचार बहुत ऊँचे हैं। मुझे इसकी इच्छा पूर्ण करनी चाहिए। वह किसी को कहे बिना ही धन कमाने के लिए परदेश चला गया। मन में एक ही विचार था कि पत्नी को दूसरों की भलाई करने की भावना है, वह मुझे पूर्ण करनी है। दूसरे का भला करना है, इन्हीं विचारों में रमण करता हुआ वह आगे बढ़ता है। अब देखिए दूसरे का भला करने की भावना, कैसे पुण्य को खेंचकर लाती है। विचारों के पुण्य से राजा बना आगे बढ़ते हुए किसी गाँव के बाहर वटवृक्ष के नीचे विश्राम लेने के लिए बैठता है। थकावट के कारण उसे निद्रा आ जाती है। इस ओर उस राज्य का राजा मरण को प्राप्त हुआ।वह पुत्र रहित था। राज्य किसको सौंपना यह विचारणा चल रही थी। राज्य के लोग परम्परा के अनुसार
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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