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परहित-चिन्तक
गुरुवाणी-३ दिव्य करते हैं अर्थात् हाथी की सूंड में कलश देते हैं, वह कलश जल जिस पर डाल दे उसे ही राजा बनाना होता है। हाथी सूंड में कलश लेकर फिरता-फिरता उस वड़वृक्ष के पास आता है और वहाँ सोए हुए व्यक्ति पर कलश का जल डाल देता है। जनता उसके नाम का जयनाद करती है। उसका राज्य अभिषेक किया जाता है। दूसरों का अच्छा करने की भावना से वह राजा बनता है। वह दीन-दुःखियों की सहायता करने लगता है। इस ओर माता-पिता के यहाँ गिरती दशा चालू हो जाती है..... घर से लक्ष्मी चली जाती है.... खाने के भी सांसे पड़ने लग जाते हैं। ऐसे विकट समय में उसने सुना कि अमुक देश का राजा दीन-दुःखियों की मदद करता है। इसलिए वे भी फिरते-फिरते उस देश में आए.... राजा झरोखे में बैठा-बैठा नगर की शोभा देख रहा था। वहाँ उसने रास्ते पर चलते हुए स्वयं के माता-पिता, भाई-भाभी और पत्नी आदि को कंगाल अवस्था में देखा। तत्काल ही झरोखे से उठकर नीचे की ओर दौड़ा। आकर माता-पिता के चरणों में गिरा। माता-पिता आदि यह देखकर आश्चर्य का अनुभव करते हैं। वह सबको अपने महल में ले जाता है। माता-पिता की सेवा, शुश्रूषा करता है। भाईयों को भी योग्य स्थान देता है और पत्नी की इच्छा पूर्ण करता है। प्रतिदिन पत्नी के हाथ से दान की गंगा बहाता है। मन की शुभ भावना से ही पुण्य खींचकर आता है। वह मिली हुई लक्ष्मी को सार्थक करता है। लक्ष्मी का उपयोग तीन स्थानों पर होता है - गात्र, खात्र और पात्र । गात्र अर्थात् शरीर । स्वयं के वैभव के लिए लक्ष्मी खर्च करता है। खात्र अर्थात् चोर इत्यादि चोरी कर जाएं अथवा आजकल तो सरकार आकर लूट जाती है। पात्र - शास्त्रकार कहते हैं कि यदि तुम्हारा धन सुपात्र को दिया जाएगा तो वह सार्थक होगा, तुम्हें सद्गति प्रदान करेगा।
__सज्जनों का वैभव परोपकार के लिए ही होता है। परोपकारी मनुष्य के रोम-रोम में एक ही विचार चलता है कि दूसरे का भला कैसे