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________________ २ धर्म कैसा गुरुवाणी-३ वेर गयां ने झेर गयां वळी काला केर गया करनार परनातीला जातीला शुं, संप करी चाले संसार देख बिचारी बकरीनो पण, कोई न जातां पकड़े कान ऐ उपकार गणी ईश्वरनो, हरख हवे तुं हिंदुस्तान इस प्रकार की वे सुन्दर कविताएं बनाते थे.... इन कविताओं से बालकों को हित शिक्षा मिलती थी । परन्तु आज के शिक्षण की कविता का एक नमुना देखिए - कालुडी कूतरीने आव्यां गलूडियां, चार काबरा ने चार भूरीया रे ... इस कविता में विद्यार्थियों को क्या सीखने का है ? कुतिया ने चार बच्चों को जन्म दिया हो अथवा छः को इससे क्या मिलना है? आज का शिक्षण वास्तव में बालकों के भविष्य को सुधारने के बजाय बिगाड़ रहा है । दूसरी तरफ अहमदाबाद में ही डाह्याभाई धोलशा नाम के कवि थे। वे भी कविता बनाने में प्रखर थे। दोनों एक-दूसरे की स्पर्धा करते थे । कड़ा की कविताएं प्रकाशित हो तो धोलशा उसमें कमियाँ निकालते थे.... जब धोलशा की कविताएं जन समक्ष आती तो कदड़ा उसमें से कमियों को ढुंढने में लग जाते.... इस प्रकार दोनों कवि कविताओं के माध्यम से मजबूत दुराग्रह में बन्ध गये । खण्डन - मण्डन चलता ही रहा.... अनादिकाल से आत्मा में यह दोष चलता ही रहता है । यह किसी का अच्छा कर ही नहीं सकता। किसी का अच्छा देखता है, तो उसके पेट में खलबली मच जाती है। आज के इंसान के दुःख की पुकार सुनोगे तो स्पष्टः ध्यान में आएगा की जो आवश्यक है, वह नहीं मिलता इसीलिए वे दुःखी नहीं है, किन्तु जो चाहिए वह नहीं मिलता उसके लिए दुःखी है । ' आवश्यकता' में प्रायः नम्बर निम्न चीजों का ही आता है जबकि 'चाहिए' में कौन सी वस्तु नहीं आती, यह प्रश्न है ? दुसरों के सुख को देखकर जलते रहते है यह भी एक प्रकार की हिंसा ही है । ये दोनों कवि एक दुसरे की उन्नति को नहीं देखते थे, किन्तु मनुष्य के
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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