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धर्म कैसा?
आसोज वदि २
अहिंसायुक्त धर्म
परम कृपालु परमात्मा हमारे जीवन को मङ्गलमय बनाने के लिए धर्म का मङ्गलमार्ग बता रहे हैं। धम्मो मङ्गल मुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो धर्म यह उत्कृष्ट मङ्गल है, किन्तु कैसा धर्म ? अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म ही मङ्गल का काम करता है । सर्वप्रथम हम अहिंसा कि व्याख्या समझें । अहिंसा अर्थात् कोई चलते फिरते जीव को मारना नहीं.... हम केवल इतनी ही व्याख्या करते हैं.... परन्तु परमात्मा ने अहिंसा का अत्यन्त सूक्ष्म रूप से वर्णन किया है। अहिंसा के बिना समस्त
प्राण रहित शरीर को श्रृङ्गार करने जैसा है। किसी बड़े जीव के प्रति अथवा छोटे से छोटे जीव के प्रति हृदय में रहा हुआ थोड़ा सा द्वेष भी एक हिंसा का ही प्रकार है अतः सर्वप्रथम मन को शुद्ध करें। मन को शुद्ध करने के लिए चार भावनाएँ बताई गई है। भावना यह एक प्रकार का पौष्टिक रसायन है । जिस प्रकार शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए मनुष्य रसायन का उपयोग करता है उसी प्रकार धर्म को स्थिर करने के लिए भावना यह उत्तम रसायन है। पहली भावना है मैत्री भावना - अजातशत्रु अर्थात् कोई मेरा शत्रु नहीं है।
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अहमदाबाद में एक महान् कवि हुए थे। हम सब उन्हें जानते हैं। उस कवि का नाम था दलपतभाई डाह्याभाई । वे कदड़ा के नाम से पहचाने जाते थे। उनकी कविता भी कैसी? जब हिन्दुस्तान अंग्रेजो के अधीन हुआ और देश में चल रही अराजकता से मुक्त बना उस समय उन्होने एक कविता बनाई थी ।