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गुरुवाणी-३
विनय सेविका को रख देंगे किन्तु स्वयं को तनिक भी कष्ट नहीं देंगे। आज तो पुत्रों को माँ-बाप से कुछ पूछने और बातचीत करने का भी समय नहीं है तब उनके पास बैठने का तो समय ही कहाँ होगा। जिस पुत्र के पीछे माता-पिता ने रात-दिन देखा नहीं वह पुत्र आज एक घण्टे का समय भी देने को तैयार नहीं है! कैसी अधमता है ! कैसी निष्ठुरता है! नमस्कार दान
___ अन्तिम दान है नमस्कार दान। इस दान से बहुत लाभ मिलता है। सन्मुख व्यक्ति से सम्बन्ध भी इसी के द्वारा होता है। परमात्मा जैसी महान् विभुति के साथ सम्बन्ध बांधना हो तो नमस्कार तो चाहिए ही। विनय होगा तभी नमस्कार कर सकेगा। माता-पिता, पति, गुरु इन सबको व्यक्ति के रूप में नहीं किन्तु तत्त्व के रूप में पूजने का है। इनका स्वभाव कैसा है यह देखने का नहीं । तत्त्व के समान ही उनको पूजना है। मन्त्रियों को नमन करेंगे। ऑफिसरों को नमन करेंगे। अरे, घर में काम करने वाले नौकर के साथ भी अच्छा व्यवहार रखेंगे किन्तु माता-पिता के चरणों में शीश झुकाते हुए लज्जा आएगी। दूध में जामन डालते ही दही कैसा गाड़ा बनता है वैसे ही जहाँ विनय होगा वहाँ प्रगाड़ स्नेह बंधेगा.... विनय रहित मनुष्य अहंकारी होता है। अहंकार वही अंधकार है। अंधकार में चलता हुआ मनुष्य टक्कर खाकर गिरेगा नहीं क्या? ठोकरें ही खाता है ! विनय वह दीपक है जो टक्कर और ठोकरों से बचाता है। विनयी मनुष्य सर्वत्र पूज्य बनता है। वही धर्म का सच्चा अधिकारी है। गुरु कृपा से क्या नहीं होता - पू. धर्मसूरि महाराज
विनय गुण तो एक जुआरी मनुष्य को कहाँ से कहाँ पहुँचा देता है। इसका संकेत बताती हुई यह सत्य घटना है। महुवा में ये रहते थे। गरीब परिस्थिति थी। किसी के यहाँ काम करके दो पैसा कमा कर लाते हैं और वे भी जुओ में हार जाते। एक दिन ये भाई पूज्य वृद्धिचन्द्रजी महाराज के परिचय में आए। जीवन में मनुष्य का परिवर्तन केन्द्र कब