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________________ विनय २०८ गुरुवाणी - ३ होता, फिर भी पच्चीस-पचास स्त्रियों के बीच से वह अपनी माँ को ढूंढ लेता है। क्योंकि माँ ने मन का दान दिया है। इसी कारण बालक उसकी तरफ आकर्षित होता है । पैसे के दान की अपेक्षा भी मन का दान बड़ाचढ़ा होता है। लाखों रुपयों का दान दें किन्तु यदि मन से नहीं दें अथवा तिरस्कार से दें? तो कोई महत्त्व नहीं है। इस दान के स्थान पर मधुर शब्दों से प्रेम के दो शब्द कहें। तो इन दोनों में कौन बड़ा? पैसे का दान देने वाला या मन का दान देने वाला ! वाणी का दान एक सेठ ने अनेक मनुष्यों को भोजन का आमंत्रण दिया। सारे लोग भोजन करने आ गए। पंगत लग गई। परोसने की तैयारी थी, उसी समय सेठ बोले- आज मैं तुम्हें ऐसी-ऐसी वस्तुएं थाली में रखूंगा कि उन वस्तुओं का नाम तुमने सुना भी नहीं होगा। बस, इधर परोसने की तैयारी होती है उसी समय सब लोग उठकर वापिस लौटने लगे। क्यों? उसके शब्दों में इतना अहंकार भरा हुआ था। प्रेम से सूखी रोटी भी खिलाने पर मीठी लगती है । मन का दान अत्यन्त महत्व का होता है। डॉक्टर के पास जाते हैं, कितने ही डॉक्टर नम्र होते हैं, स्वभाव से मधुरभाषी होते हैं, उनके साथ बातचीत करते ही दर्दी का आधा दर्द समाप्त हो जाता है जबकि कितने ही डॉक्टर ऐसे अकड़ होते हैं कि उनसे दोबारा पूछने पर तुरन्त ही चिल्ला उठते हैं। पूरी बात भी नहीं सुनते हैं। ऐसे डॉक्टर दर्दी को कैसे लगते हैं? काया का दान यमराज जैसा लगता है न ! जैसे मन के दान का महत्व है वैसे ही काया के दान का भी उतना ही महत्व है। किसी बीमार मनुष्य की सेवा करना और उसके पैरों को दबाना । यह दान बहुत ही कठिन है। लाखों रुपये खर्च करने वाले छः फुट की काया को झुका नहीं सकते। अपने माँ - बाप की सेवा नहीं कर सकते। माता-पिता बीमार होंगे तो किसी
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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