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गुरुवाणी-३
विनय उससे पूछा कि उस बुढ़िया माँ को तूने किस आधार से जवाब दिया। उसने कहा - गुरुजी! बुढ़िया माँ ने जिस समय प्रश्न किया था उसी समय उसके सिर से घड़ा नीचे गिर पड़ा और टूट गया, उस घड़े के टुकड़े मिट्टी में मिल गये और उसमें रहा हुआ पानी नीचे गिरकर तालाब के पानी में ही मिल गया इससे मैंने यह निष्कर्ष निकाला कि मिट्टी मिट्टी में मिल गई
और पानी पानी में मिल गया, जो जिसका था उसी में मिल गया। इसीलिए बुढ़िया माँ को भी उसका बेटा मिलना ही चाहिए। गुरु महाराज समझ गए कि विनय के द्वारा ही उसकी बुद्धि परिपक्व हुई। अविनीत को अपनी भूल समझ में आने लगी। विनय करते हुए उत्पन्न बुद्धि विलक्षण होती है। उससे इस लोक में तो कल्याण होता ही है और परलोक में भी कल्याण होता है। स्वर्ग यहीं है
जीवन के भीतर समस्त सुखों का मूल 'पुण्य' है। पुण्य का मूलधर्म है और धर्म का मूल विनय है। समस्त सुखों की कुंजी परम्परा से विनय में समाहित है। विनय यह हरी झंडी है। जबकि मान यह लाल झंडी है। रेलगाड़ी को रवाना करने के लिए हरी झंडी दिखाई जाती है। इसी प्रकार जीवन की गाड़ी को आगे चलाना हो तो हरी झंडी को ही स्वीकार करो। घर के प्रत्येक सदस्य यदि विनय से व्यवहार करें तो स्वर्ग यहीं है। नौ प्रकार के दान
शास्त्रों में ९ प्रकार के दान के प्रसंग आते हैं:- १. अन्न २. वस्त्र ३. पानी ४. स्थान ५. शय्या ६. मन ७. वाणी ८. काया ९. नमस्कार। इन ९ प्रकार के दानों में पैसे का दान तो कही आता ही नहीं है। प्रारम्भ के दान तो समझ में आते हैं किन्तु मन, वाणी, काया, नमस्कार का दान? मन का दान करना यह सबसे बड़ा दान है। ६ या ७ महीने के बालक को मेरी माता कौन यह अथवा यह मेरी जन्मदाता है ऐसा कोई ज्ञान नहीं