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________________ विनय २०५ गुरुवाणी-३ होने के कारण ही बड़े लोग लड़कों को सच्ची बात कहने पर वे स्वयं शोक का अनुभव करते हैं, डरते रहते हैं । छोड़ो न! लड़के को बुरा लगेगा और मुझे घर से भी निकाल देगा तो! इस कारण से सच्ची बात और सच्ची सलाह भी नहीं देते हैं । इसीके फलस्वरुप समाज में शान्ति देखने को नहीं मिलती। सासु बहू को सच्ची शिक्षा नहीं दे सकती। इस संसार की ऐसी ही दशा है ! पहले विनीत शिष्य को शिक्षा देते हुए शिक्षक स्वयं का ज्ञान उन्डेल देते थे। यह विद्यार्थी मेरा है, ऐसा समझकर उसके पीछे अपना सर्वस्व झोंक देते थे। उस जमाने में अमुक उपाध्याय के विद्यार्थी होना भी सम्मान की बात गिनी जाती थी। आज यदि उसकी तुलना की जाए तो! विद्यार्थी और शिक्षक के बीच में कैसा वातावरण है! शिक्षक सच्चे दिल से पढ़ाते नहीं है। शिक्षक का तो सम्बन्ध केवल वेतन से रहता है। उद्धत् विद्यार्थी भी घूस (रिश्वत) के द्वारा अथवा अपनी धाक जमाते हुए आगे बढ़ने का प्रयत्न करते हैं । परिणाम स्वरूप दोनों पक्षों में अशांति है। विद्या तो दान है। यह पैसे से बिकती नहीं है। आज तो विद्या भी धन से मिलती है इसी कारण सच्चा ज्ञान रहा ही नहीं। विनयी शिष्य का उत्तर विनय करते-करते मनुष्य में एक प्रकार की विलक्षण कोटि की बुद्धि उत्पन्न हो जाती है। उसी को वैनयिकी बुद्धि कहते हैं । विनय के द्वारा कैसा बुद्धि-चातुर्य प्रकट होता है, यह हम देख चुके हैं। दोनों शिष्य तलाब के किनारे बैठे हुए हैं । उसी समय बुढ़ी माँ हाथ में भेंट लेकर आती है। विनीत शिष्य के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देती हुई कहती है - हे पुत्र! तूने जो कहा था, उसी के अनुसार हुआ है। मैंने मोहल्ले में प्रवेश किया, उसी समय मेरा प्रिय पुत्र दौड़ता हुआ आया। तु खूब सुखी होना, इस प्रकार आशीर्वाद देकर बुढ़ी माँ अपने घर जाती है और दोनों विद्यार्थी भी गुरुकुल में वापस लौटते हैं। गुरुकुल में पहुँचते ही विनयी शिष्य तो दौड़कर गुरु के चरणों में गिर पड़ता है। गुरु महाराज भी धीमे हाथों से
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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