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गुरुवाणी-३
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विनय लगे हुए हैं और उसके बाहर ही हथिनी बंधी हुई है। थोड़े समय के बाद ही बाजे बज उठे। उन्होंने लोगों से पूछा कि क्या हुआ? तो उत्तर मिला कि रानी ने पुत्र को जन्म दिया है। अविनीत शिष्य को यह सब दृश्य देखकर
और सुनकर मन में आकुलता पैदा हुई। उसने मन में विचार किया कि गुरु महाराज ने निश्चित ही इसको सब कुछ सिखाया है और मुझे नहीं सिखाया, पक्षपात किया है। मन ही मन में व्याकुल होता रहा। फिर दोनों तालाब के किनारे आकर बैठे। वहाँ कोई बुढ़ी माँ पानी भरकर जा रही थी। इस बुढ़ी माँ का पुत्र बाहर गाँव गया हुआ था। बुढ़ी माँ ने इस दोनों को ज्योतिषि समझकर पूछा - भाईयों! मेरा लड़का परदेस गया हुआ है, वह कब आएगा? प्रश्न पूछने के साथ ही उसी समय बुढ़िया की असावधानी से सिर पर रखा हुआ पानी का घड़ा नीचे गिर गया और टूट गया। अविनीत शिष्य यह सब कुछ देखकर एकदम बोल उठा- हे बुढ़िया माँ! दुःख की बात है, शायद तुम्हारा पुत्र मर गया होगा। यह सुनते ही बुढ़ी माँ की आँखों के सामने अंधेरा छा गया, विलाप करने लगी। उसी समय पहले विनयवान शिष्य बोल उठा-माँजी! चिन्ता मत करो, तुम्हारा पुत्र तुमको इसी समय मिलेगा। बुढ़िया को हृदय में शान्ति मिली, किन्तु दोनों में सच्चा कौन? इस पर आगे विचार करेंगे।
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चलती चकीयां देखकर बैठ कबीरा रोय दोपड़ भीतर आयके साबूत रहे न कोय चक्की चले तो चलने दो तु काहे को रोय खीलड़े से बिलगा रहे तो पीस सके न कोय परमात्मा रूपी कील से जो बंधा हुआ रहता है,
उसको कोई भी पीस नहीं सकता !
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