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विनय
गुरुवाणी-३ हुए दो कुएं देखें। एक में गटर का पानी था और दूसरा सुगंधित जल से भरा हुआ था। यह देखकर तूं तो गंदे पानी के कुएं में नहाने के लिए गिर पड़ा और मैं सुगंधित जल के कुएं में पड़ा । वास्तव में तो अकबर बीरबल की चतुराई को काट रहा था किन्तु बीरबल तो प्रत्युत्पन्नमति था। उसने कहा स्वामी मुझे भी ऐसा ही स्वप्न आया था किन्तु मैंने इससे भी आगे बढ़कर देखा। हम दोनों कुएं में पड़े, कुएं से निकलकर मैं तुम्हारे शरीर को चाटने लगा और तुम मेरे शरीर को चाटने लगे। अकबर एकदम चुप हो गया। ऐसी तो अनेक बातें हाजिरजवाबी बुद्धि की प्रचलित है। वैनयिकी बुद्धि - दो शिष्यों का दृष्टान्त
चौथी बुद्धि है वैनयिकी - विनय करते-करते ही मनुष्य में यह बुद्धि प्रकट होती है। शास्त्र में दृष्टान्त आता है:- एक गुरु के दो शिष्य थे। गुरुकुल में रहकर दोनों ही पढ़ते थे। एक विनीत था और दूसरा अविनीत। विनीत शिष्य गुरु की सभी प्रकार की सेवा बहुमान पूर्वक करता था। गुरु के इंगित (मुद्रा) पर से वह समझ जाता था। गुरु उन दोनों शिष्यों में किसी प्रकार का भेदभाव न करते हुए पढ़ाते थे। एक समय दोनों शिष्य को किसी कार्य के लिए गुरु महाराज ने पास के गाँव में भेजा। दोनों शिष्य जाते हैं। रास्ते में पैरों के चिह्न देखकर अविनीत शिष्य यकायक बोलता है - यहाँ से कुछ समय पहले ही कोई हाथी गया हो ऐसा लगता है। उसी समय विनीत शिष्य बोलता है - हाथी नहीं, हथिनी गई दिखती है। कुछ दूर आगे जाने पर पुनः वह कहता है - वह हथिनी दांयी आँख से कानी है। कुछ आगे जाने पर विनीति शिष्य फिर कहता है - उसके ऊपर राजारानी बैठे हुये थे, रानी ने लाल रङ्ग की साड़ी पहन रखी है, वह गर्भवती है, वह कुछ समय में ही पुत्र को जन्म देने वाली है। यह सुनकर अविनीति शिष्य कहता है - हे मित्र! क्या गप्पे मारता है। तुझे किसी प्रकार का ज्ञान हुआ है या अपने आप ही बोल रहा है। बातें करते हुए वे दोनों गाँव के किनारे पहुँचते हैं। वहाँ देखते हैं कि राजकीय डेरे-तम्बू