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गुरुवाणी-३
विनय भी आपके प्रति कितनी मर्यादा रखते हैं। तब सूरिजी कहते हैं - हे राजन् ! तुम्हारे राजकुमार को तो केवल एक देश का ही राज्य मिलने वाला है, जबकि हमारे साधुओं को इस विनय के द्वारा तीन लोक का राज्य मिलना है। विनय द्वारा ही उनका आत्म कल्याण होने वाला है। विनय से वाणी की शक्ति विकसित हो जाती है। गुरु कृपा हो जाए तब तो साक्षात् सरस्वती ही उसकी जिह्वा पर आकर बैठ गई हो ऐसा लगता है !
भारत की एक परम्परा थी कि मनुष्य किसी भी अच्छे स्थान पर जाए तो वहाँ मस्तक को झुकाकर, साथ ही वहाँ जो वृद्ध और पूज्य हो उनको नमस्कार करके ही बैठे। आज तो मस्तक झुकाने के स्थान पर सलाम (हाय/हैलो) आ गया है। आज अहम् से मस्तक इतना भारी हो गया है कि वह झुक भी नहीं सकता। चार प्रकार की बुद्धि
शास्त्रों में चार प्रकार की बुद्धि का वर्णन आता है। पहले प्रकार की बुद्धि है - कार्मणिकी।काम करते-करते ही मनुष्य को जो सूझ प्राप्त होती जाती है उसे कार्मणिकी बुद्धि कहते हैं। किसान का लड़का खेती का काम करते-करते ही योग्यता को धारण कर लेता है। दूसरे प्रकार की बुद्धि है - पारिणामिकी। अर्थात् अवस्था के साथ ही जो विकास को प्राप्त करती है। जिस प्रकार मनुष्य ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है, त्यों-त्यों उसकी बुद्धि भी परिपक्व और स्थिर बनती जाती है। बचपन में बुद्धि भी बचपने जैसी होती है। वह ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है, उसकी बुद्धि में स्थिरता आती जाती है। तीसरे प्रकार की बुद्धि होती है - औत्पातिकी।
औत्पातिकी अर्थात् प्रत्युत्पन्नमति/हाजिरजवाबी जिस क्षण में प्रश्न पूछा जाए उसी क्षण में बुद्धि एकदम स्फुराय मान होती है। बीरबल के पास में औत्पातिकी बुद्धि थी। इसी बुद्धि के बल पर वह अकबर सम्राट का प्रिय हो गया था। एक समय अकबर ने बीरबल को कहा - बीरबल! आज मुझे स्वप्न आया था कि हम दोनों घूमने के लिए निकले । आगे जाते