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________________ २०० विनय गुरुवाणी-३ का कारण है। राजा को अत्यन्त विश्वास हो, इसलिए सूरिजी महाराज ने राजा के समक्ष ही एक शिष्य को बुलाया। आवाज के साथ ही वह शिष्य हां जी कहकर उपस्थित हुआ। हाथ जोड़कर नम्रता पूर्वक पूछता है - भगवन् ! क्या आज्ञा है? जाओ और देखकर आओ कि गंगा किस दिशा में बह रही है। तहत्ति' कहकर आज्ञा को स्वीकार कर वह शिष्य बाहर निकलता है। गाँव की सीमा पर आता है, वहाँ गंगा पूर्व दिशा में बह रही है, वह देखता है। पूर्ण रूपेण निश्चय करने के लिए आस-पास के लोगों से भी पूछता है और नदी में यह तृण बह रहा है, उसके आधार से उसे दृढ़ निश्चय हो जाता है कि गंगा नदी पूर्व दिशा में ही बह रही है। वापिस लौटकर सूरिजी को नमस्कार कर कहता है - भगवन्, गंगा पूर्व में बह रही है। राजा के गुप्तचर साधु महाराज के पीछे-पीछे चल रहे थे। वे भी राजा को कहते हैं - राजन्, साधु महाराज वहाँ जाकर अच्छी तरह से जानकारी लेकर आए हैं अब राजा अपने राजकुमार को बुलाकर कहता है - पुत्र, जाओ, देखकर आओ कि गंगा किस दिशा में बह रही है। राजकुमार पहले ही उत्तर देता है कि पिताजी, गंगा तो पूर्व में बह रही है। तब राजा कहते हैं - मैं कहता हूँ न? तुम अच्छी तरह से देखकर आओ की गंगा किस दिशा में बह रही है। पिता के कहने से बड़-बड़ करता हुआ और पैर पछाड़ता हुआ बाहर निकलता है। राजा के गुप्तचर भी उसके पीछे चलते हैं। राजकुमार विचार करता है कि इस बुड्ढे की तो मति ही भ्रष्ट हो गई है 'साठे बुद्धि नाठी'। यह तो छोटा सा बालक भी जानता है कि गंगा पूर्व में बहती है। इसको देखने के लिए जाने की क्या जरूरत है। इसीलिए वह समय बिताकर, वापस लौटकर, राजा को कहता है - पिताजी, गंगा पूर्व में बह रही है। उसके पहले ही राजा के गुप्तचरों ने आकर सारे समाचार दे दिए थे। राजा गुरु भगवंत को पूछता है - भगवन्, आपके शिष्यों का विनय देखकर मुझे अत्यधिक आश्चर्य हो रहा है। यह शिष्य आपके सगे सम्बन्धी भी नहीं हैं और न ही आपके देश के हैं। फिर
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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