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विनय
कार्तिक वदि ४
धर्म रूपी वृक्ष का मूल
धर्म रूपी रत्न प्राप्त करने के लिए जीवन में किन-किन गुणों की आवश्यकता पड़ती है उसका विवेचन चल रहा है। उसमें भी विनय गुण का प्रसंग चल रहा है। विनय यह धर्म रूपी वृक्ष का मूल है। मूल होगा तभी वृक्ष स्थिर रहेगा और वृक्ष पर फल-फूल आएंगे। यह वृक्ष सामान्य वृक्षों की अपेक्षा बहुत बड़ा है। कोई भी वृक्ष हो उस पर एक ही प्रकार के फल आते हैं। आम्र के वृक्ष पर केरियाँ ही आएंगी। चीकू और सीताफल नहीं आते हैं, किन्तु यह विनय जिसका मूल है ऐसे धर्म रूपी वृक्ष पर तो विविध प्रकार के फूल आते हैं। शांति, समाधि, सुख-समृद्धि
और आनन्द जैसे कई फल प्राप्त होते हैं । वृक्ष पर जब फल आते हैं, तो वृक्ष झुक जाता है, नम जाता है। किन्तु आज का मनुष्य तो वृक्ष की अपेक्षा भी निम्न स्तर का हो गया है। उसको ज्यों-ज्यों बुद्धि रूपी, सम्पत्ति रूपी और मान-वैभव रूपी फल मिलते हैं त्यों-त्यों वह अहंकार में अकड़ जाता है। वृक्ष के ढूंठ के समान बन गया है। समृद्धिमान होते ही स्वयं पूर्व के मित्र मण्डल में बैठते हुए भी लज्जा अनुभव करता है.... उनको बुलाकर संभाषण भी नहीं करता है। उसकी बैठक तो बड़े-बड़े व्यापारियों के साथ होती है.... ऐसी घटनाएं तो आज भी अधिकांशतः सुनने को मिलती है। कल का ग्रामीण, शहर में जाकर करोड़पति बन जाता है, तो वह जब गाँव में आता है, तब गर्दन को अकड़ा कर रखता है। सामान्य मनुष्य को तो वह बुलाता भी नहीं। विनय के बिना यह सारी सम्पत्ति मनुष्य को नीचे गिरा देती है। प्रकृति भी हमको नमन करने की शिक्षा देती है।