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गुरुवाणी-३
विनय को नहीं पहचान पाता तब तक सबकुछ निरर्थक है। कहा जाता है "ज्यां लगी आत्मा तत्त्व चिन्त्यो नहीं, त्यां लगी साधना सर्व झूठी" आत्मा कौन है? कहाँ से आयी है? कहाँ जाने वाली है? ऐसे प्रश्न के विषय में जगत् का अधिकांश वर्ग कल्पना भी नहीं कर पाता। आत्मा नाम का कोई पदार्थ जगत् में विद्यमान है, इसको भी मानने के लिए तैयार नहीं होते। केवल इस भव में जो मिला है, उसका भोग कर लो और जो प्राप्त नहीं हुआ है, उसको प्राप्त करने का प्रयत्न करो.... इसी में ही जगत् का अधिकांश वर्ग डूबा हुआ है।
अनीति, लुट-मार कर एकत्रित की हुई सम्पत्ति कभी भी सुख/समाधि नहीं दे सकती। जीवन में/घर में, अशांति,
चिन्ता और आपत्तियाँ ही लाती है।