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गुरुवाणी-३
विनय करता है। एक दिन गांव में पंचायत भरी, उसमें गाँव के ठाकुर मुख्य स्थान पर बैठे। पिता पुत्र को साथ लेकर उस पंचायत में आते हैं और आकर ठाकुर के चरणों में शीश झुकाते है। पुष्पशाल को अन्य कोई ज्ञान तो था नहीं किन्तु इतना ही ज्ञान था कि पिता जिसको नमस्कार करते हैं, तो वे उनकी अपेक्षा से बड़े हैं, अतः मुझे उनकी सेवा करनी चाहिए। अब ठाकुर की सेवा करता है। एक बार श्रेणिक महाराजा की सभा में ठाकुर आदि जाते हैं । वहाँ ठाकुर श्रेणिक राजा कर्को विनय पूर्वक नमन करता है। पुष्पशाल यह देखता है, तो वह भी उनका विनय करता है। तत्पश्चात् श्रेणिक महाराज आदि सभी सभ्य लोग भगवान की देशना सुनने के लिए जाते हैं। पुष्पशाल भी साथ में जाता है। श्रेणिक राजा भगवान के चरणों में झुककर नमन करता है । पुष्पशाल यह देखकर विचार करता है कि यह व्यक्ति तो सबसे ऊँचा और महान् लगता है। इसीलिए मुझे इनकी सेवा करनी चाहिए। अन्य कोई व्यवहारिक ज्ञान उसे था नहीं बस, बड़े जिसको नमस्कार करें उसकी सेवा मुझे करनी चाहिए, इतना ही ज्ञान था। भगवान के पास जाता है और भगवान को कहता है- हे भगवन्! मुझे तो आपकी ही सेवा करनी है। भगवान देखते है कि लड़का विनय सम्पन्न और सरल स्वभाव का है अतः उसको दीक्षा दे देते है। पुष्पशाल दीक्षा लेकर स्वयं का आत्मकल्याण कर लेता है। विनयी मनुष्य को सब मान
देते हैं।
गुणों को ग्रहण करने के लिए पात्र
विणओ सासणे मूलं । अर्थात् विनय यह शासन का मूल है। जिसके जीवन में विनय नहीं है उसका धर्म कैसा और तप कैसा? विनय रहित तप को शास्त्रकारों ने भूखमरा कहा है। माता-पिता का, बड़ो का, गुरु और परमात्मा आदि सबका विनय करने का शास्त्रकार कहते हैं। विनय तो सर्वगुणों का पात्र माना जाता है। सर्वेषां गुणानां भाजनं