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विनय
गुरुवाणी-३ राजाधिराज के मन्दिर में हमारा प्रवेश कैसे हो सकता है ! नमस्कार से ही। नमस्कार यह भगवान के साथ जुड़ने की कुंजी है। गौतम स्वामी महाराज भी विनय से ही महान् बने थे न ! भगवान के चरण में मस्तक रख्खा तो वह रख ही दिया। स्वयं चार ज्ञान के अधिपति होते हुए भी कभी उन्होंने ज्ञान का उपयोग नहीं किया। किसी भी प्रकार की शंका उत्पन्न होने पर वे भगवान के पास जाते.... भगवान के पास जाकर तीन प्रदक्षिणा देकर उकडू आसन से बैठकर भगवान से पूछते - भन्ते! यह कैसे? कितनी नम्रता....! नम्रता सबसे बड़ा धर्म है। तुम कुएं मे से पानी भरने के लिए घड़े को कुएं मे उतारते हो। घड़ा तिरछा होता है, तभी उसमें पानी भरता है न! सीधा का सीधा रहने पर वह पानी पर तैरता रहता है। पानी का स्पर्श होने पर भी एक बूंद पानी क्या उस घड़े में आता है? विनय मनुष्य को कहाँ से कहाँ ले जाता है, उसका एक दृष्टान्त शास्त्र में आता है। पुष्पशाल की कथा
भगवान महावीर के समय में किसी गाँव में पुष्पशाल नाम का एक लड़का रहता था। गाँव का लड़का। अन्य कोई धर्म नहीं जानता था। बाल्यावस्था से ही उसके स्वभाव में विनय गुण रहा हुआ था। कुलवान मनुष्य स्वभाव से ही विनयी होता है। कहीं भी नमन करने की बात हो तो वहाँ अग्रसर ही रहता था। जबकि कुलहीन मनुष्य अहंकारी होते हैं। मैं क्यों नमस्कार करूं? ऐसा विचारधारा वाला होता है। बाहुबली ने नमन करने की प्रतिस्पर्धा की तो केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। बारह-बारह महीनों तक घोर तपस्या के अन्त में भी जो नहीं मिला वह पैर उठाते ही मिल गया। नमन करने में कैसी विलक्षण शक्ति है! पुष्पशाल ने घर में प्रतिदिन के व्यवहार से जान लिया कि घर में पिता बड़े है। क्योंकि माता भी पिता को नमस्कार करती है और दूसरे मनुष्य भी पिता को ढोक देते हैं, इसलिए मुझे भी पिता की सेवा करनी चाहिए। पिता का खुब विनय