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विनय
कार्तिक वदि ३
छःहों खण्ड में जागृत शासन
जगत् का विषम स्वरूप। एक बालक कितने आनन्द से पत्तों का महल बनाता है और बनाने के बाद उसको देखकर कितना हर्षित होता है। बड़े आदमी को यह महल देखकर आनन्द होता है क्या ! नहीं क्योंकि वह समझता है कि एक पवन का झपाटा लगेगा त्यों ही यह गिर पड़ेगा। उसी प्रकार तुम्हारे ये बंगले, गाड़ी, बगीचों को देखकर महापुरुष तनिक भी आनंदित नहीं होते हैं। वे समझते हैं कि कालरूपी पवन का झपाटा लगते ही यह महल भूमिसात हो जाएगा और मृत्यु रूपी वायु का झपाटा लगते ही इस महल को बनाने वाला भी चला जाएगा। इसमें आनन्द मानने जैसा क्या है। आज तक असंख्य मनुष्य ही नहीं, अपितु असंख्य साम्राज्य भी नष्ट हो गये हैं। ब्रिटिश साम्राज्य के लिये कहा जाता था कि उसके राज्य में सूर्य अस्त ही नहीं होता अर्थात् भारत में सूर्य अस्त होता है, तो वहाँ सूर्य उदय हो जाता है। इतना बड़ा साम्राज्य था कि सूर्य एक देश में अस्त होता और दूसरे देश में उदय हो जाता। ऐसे साम्राज्य का भी विनाश हो गया, जबकि भगवान महावीर का शासन छहों खण्ड में वैसा ही प्रकाशमान है। इसका कभी नाश नहीं होगा। श्रेय और प्रेय
___ कंचन, कामिनी, पुत्र, पौत्र, यह सब प्रेय पदार्थ है। सर्वदा पराधीन है। जबकि उसके समक्ष क्षमा, सरलता, कोमलता, निर्लोभता
आदि श्रेय पदार्थ हैं, जो सर्वदा स्वाधीन है। श्रेय पदार्थों से अत्यन्त लाभ होता है, और क्लेश कम होता है। जबकि प्रेय पदार्थों से लाभ कम होता