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गुरुवाणी - ३
वृद्धानुग
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है । जिसकी दुर्गन्ध से आपने मुँह सिकौड़ लिया था। मैंने उस समय कहा था कि अशुभ पुद्गल शुभ बनते हैं और शुभ पुद्गल अशुभ बनते हैं । यह मेरी वाणी नहीं थी, किन्तु भगवान महावीर की वाणी थी। राजा कहता है - मुझे वह वाणी को सुनना है। उसके बाद राजा पूर्ण रूप से धर्मात्मा बन जाता है। इसके अनुसार स्थिर चित्त वाले मनुष्य की संगति मनुष्य को कहाँ से कहाँ पहुँचा देती है।
निरोगी रहने के लिए ( चरक संहिता) १. हितभुक् अर्थात् जो पथ्यपूर्वक खाता है । २. मितभुक् लगने पर ही खाने वाला।
३. अशाकभुक् - अर्थात् सब्जी रहित खाने वाला
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अर्थात् सीमित खाने वाला यानि भूख