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वृद्धानुग
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गुरुवाणी - ३ किया कि बारात में एक भी वृद्ध को नहीं ले जाएँगे। उस समय में वाहन नहीं थे। बैलगाड़ियों से ही व्यवहार चलता था । दो-चार गाड़े भरकर बारात निकली। घर का जो मुखिया था उसको ऐसा लगा कि यह सब कुछ गलत हो रहा है। यह जवानी का जोश कुछ नया ही तमाशा करके आएगा। ये उन्माद के आवेग में चढ़े हुए हैं.... सोचे-समझे बिना ही कार्य कर रहे हैं.... युवकों को समझाना भी कठिन है.... उस मुखिया ने यह विचार किया कि युवकों को खबर भी नहीं पड़े इस तरह से मैं इनके साथ चला जाऊं । गाड़े के नीचे वस्तुओं को रखने के लिए एक स्थान विशेष होता है। उसमें वह वृद्ध छुपकर बैठ गया। दूसरे गाँव बारात पहुँची । समधी ने देखा कि बारात में कोई भी बुढ्ढा नहीं है। देखूं तो सही की युवक कितने बुद्धिशाली हैं? समधी ने परीक्षा करने के लिए युवक वर्ग से कहा कि तुम्हारे गाँव के कुएं को तुम यहाँ ले आओ तभी मैं मेरी कन्या का विवाह कर सकता हूँ । युवक वर्ग तो चिन्ता में पड़ गये कि कुएं को कैसे लाया जाए। कुएं को कोई पैर नहीं होते हैं कि वह चलकर यहाँ आ जाए? क्या करना? जब तक कुआं यहाँ नहीं आएगा, तब तक वह कन्या का विवाह नहीं करेगा.... उनको कोई मार्ग नजर नहीं आया। गाड़ों को वापिस लौटाने का विचार कर ही रहे थे, उसी समय गाड़े के नीचे छुपा हुआ वृद्ध बाहर निकला । उसने पूछा- क्या बात है ? उत्तर मिला - समधी कुएं को लाने की बात करते हैं। कुआं किस प्रकार आ सकता है? उत्तर मिला- इसमें क्या है? समधी के पास चलते हैं, उसको मैं जवाब दूंगा । वहाँ जाकर उस वृद्ध ने कहा- देखो भाई, हमारे गाँव का कुआं बहुत ही शरम वाला है, साथ ही वह गाँवड़े का है । वह अकेला शहर में नहीं आ सकता। अनजाने गाँव में जाने के लिए भौमिया / मार्ग जानकार की भी आवश्यकता होती है। कुएं को कोई भी मनुष्य भौमिया की तरह हो तो वह काम का नहीं है । कुएं को तो भौमिया के रूप में कुआं ही चाहिए इसीलिए तुम तम्हारे गाँव के कुएं को लेने के लिए भेजो। यह क्या सम्भव है? समधी ने धन्यवाद दिया । गाड़े वापिस आए। इसके बाद तो युवक