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________________ वृद्धानुग कार्तिक वदि २ वाणी रूपी किरणें आत्मा अनन्त गुणों का स्वामी है, किन्तु वे सब गुण आच्छादित हो गए हैं। जैसे सूर्यास्त के समय कमल कैसे बन्द हो जाता है वैसे ही हमारा गुण रूपी कमल भी बन्द हो गया है। उसको विकसित करना है। गुरुवाणी रूपी किरणें उन पर पड़ने से वह खिल जाता है, किन्तु इन किरणों को हम ग्रहण कर सकें तभी न! किसी भी वस्तु को प्राप्त करने के बाद जो उसके योग्य नहीं बनेंगे तो हाथ में आई हुई बहुमूल्य वस्तु भी चली जाती है। यदि बालक को सच्चा कोहिनूर हीरा दिया जाए तो वह उसका क्या करेगा? फैंक देगा न ! क्योंकि बालक उस हीरे के योग्य ही नहीं है। उसको उस हीरे की वास्तविक कीमत का ज्ञान भी नहीं है। वैसे ही हमें भी इस धर्म रूपी हीरे की कीमत समझने के लिए योग्य बनना पड़ेगा। योग्य बनने के लिए गुणों को ग्रहण करना पड़ेगा। हम धर्मार्थी व्यक्ति के १७वें गुण वृद्धानुग पर विचार कर रहे हैं। जवान मनुष्यों में जो उन्माद, आवेश और उर्मियां होती है वे वृद्ध मनुष्यों में ठण्डी पड़ जाती है। सोच-समझकर कदम उठाने वाले होते हैं। वृद्धों के पास में बैठेंगे तो हमारे में भी स्थिरता आयेंगी। अनेक गुण और दोष संसर्ग से ही आते हैं। आज वृद्ध किसी को अच्छा नहीं लगता है। यही कारण है कि अशान्ति और क्लेश पैदा हो जाते हैं। अपने यहाँ कहावत है कि घरडा गाडां वाळे? यह कहावत ऐसे ही नहीं पड़ी है.... घरडा गाडां वाळे - ( दृष्टान्त) ___ किसी गाँव में विवाह का अवसर था। बारात लेकर जाने का था। युवा पीढ़ी उन्माद में चढ़ गई, और सब युवकों ने मिलकर यह निश्चय
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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