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वृद्धानुग
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गुरुवाणी - ३ फेंक दिया जाता है, ऐसा कहा जाता है । खाना-पीना, इज्जत, मानसम्मान ये सब तो सामान्य में सामान्य वस्तुएँ हैं । पर परमात्मा के भजन से वह छोटी सी इस जिन्दगी में भी महान् से महान् बन सकता है ।
जिन्दगी में एक पल ऐसा भी आता है कि उस पल में डूब गए तो डूब गए और निकल गए तो पार उतर गए.... यह पल है संसार के बन्धनों में पड़ने का ....!
समकित के पाँच आभूषण
1. स्थैर्य-स्थिरता, 2. प्रभावना, 3. प्रभु भक्ति, 4. जिनशासन में कुशलता, 5. तीर्थ सेवा (जंगम, स्थावर) समकित के पाँच दोष
1. शंका, 2. कांक्षा, 3. विचिकित्सा, 4. मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा, 5. मिथ्यात्वी का परिचय ।