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________________ १८२ वृद्धानुग गुरुवाणी - ३ घी ऊँचे भाव में बिकेगा तथा मुझे अधिक फायदा होगा। चमड़े वाला यह विचार करता है कि मैं जहाँ जाऊँ वहाँ सुकाल हो, जिससे पशुओं का मरण नहीं हो और मेरे चमड़े के भाव अधिक बड़े । विचारों का अत्यधिक प्रभाव होता है। जिसे काला बाजार कहते हैं क्या उस बाजार को काले रङ्ग से रङ्गा हुआ होता है? अथवा काले रङ्ग का साईन बोर्ड लगा हुआ रहता है? नहीं, विचार काले हैं, इसीलिए वह काला बाजार कहलाता है। वृद्ध होने के कारण उसने जीवन में बहुत अनुभव किया था इस कारण उसकी बुद्धि भी परिपक्व हो गई थी । उसने दोनों व्यापारियों के मन के विचारों को जान लिया था। दोनों ने अपनी-अपनी भूल स्वीकार की और जीवन को सुधार लिया। संग वैसा ही रंग सोने के मेरु पर्वत पर घास आदि पैदा होते ही है । वे भी सोने के भाव में ही बिक जाते हैं न ! क्योंकि सोने के जैसी ही लगती है । उसी प्रकार अच्छे मनुष्यों की संगत से दूषित विचार वाला मनुष्य भी अच्छा बन जाता है। जैसी संगति हो वैसा रंग लग ही जाता है। जंगल में खोए हुए व्यक्ति को आसानी से रास्ता मिल जाता है, किन्तु यौवन में खोए हुए व्यक्ति को मार्ग मिलना बहुत दुर्लभ होता है। यह छोटी सी जिन्दगी भी बहुत मूल्यवान है। इस छोटी सी जिन्दगी में बड़ी से बड़ी कमाई हो सकती है। वीतराग स्तोत्र में आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि महाराज ने कहा है - यत्राल्पेनापि कालेन त्वद्भक्तेः फलमाप्यते । कलिकालः स एकोsस्तु, कृतं कृतयुगादिभिः ॥ लोग भले ही कहें कि कलियुग है, किन्तु इस कलियुग में भी थोड़े से समय में बहुत कुछ कमाया जा सकता है। जबकि के सत्युग समय लम्बी आयुष्य में भी एक सेकंड के प्रमाद के कारण कहाँ से कहाँ
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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