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________________ १७९ गुरुवाणी-३ वृद्धानुग युवकों की बुद्धि को उच्छृखल बना देता है। युवानों के विचारों में सर्वदा आवेग का तत्त्व अधिक होता है। वृद्ध की संगत न हो तो वह अंकुश में नहीं रहती। वृद्ध मनुष्य जीवन में अनेक ऊँच-नीच देख चुका होता है इसीलिए वह अनुभवी बन जाता है। उसकी बुद्धि स्थिर होती है। पके हुए घड़े में चाहे जितना भी गरम पानी डाला जाए तो क्या उसका नुकसान होता है? और जो कच्चे घड़े में पानी डाला जाए तो उसको टूटते हुए कितनी देर लगती है? जैसे वह घड़ा अग्नि की ताप से पक जाता है, उसी प्रकार वृद्ध मनुष्य भी जीवन के मीठे-कड़वे अनुभवों के कारण अनुभवी होता है। कहीं भी झगड़ा खड़ा हो तो उसका शमन करने के लिए वृद्ध की आवश्यकता पड़ती है। इसी कारण जो मनुष्य वृद्धों की संगत में रहता है, उसमें स्वतः ही गुण आ जाते हैं। वृद्ध किसे कहें? वृद्ध किसे कहें? क्या सिर पर सफेद बाल आ जाने से ही वह वृद्ध कहा जाएगा। शास्त्रकार कहते हैं कि हाँ वे केवल अवस्था से वृद्ध कहलाते हैं, किन्तु उसके अतिरिक्त भी जिनमें तप, श्रुत, धैर्य, विवेक और इन्द्रियों पर संयम आदि गुण हों तो वह तरुण भी वृद्ध कहलाता है। आज के युग में सफेद बाल होने पर भी वह टी.वी. के सामने आँखे फाड़-फाड़ कर देखता रहता है.... मित्र! इस अवस्था में तो टी.वी. देखने में क्या रखा है? वह उत्तर देगा - साहेब! क्या करे, घर में बैठे-बैठे समय नहीं बीतता। समय बीताने के लिए ही यह देखते हैं। भगवान का नाम लो। टी.वी. देखने से तुम्हारा कल्याण नहीं होगा। सिर पर सफेद बाल आ जाने मात्र से वह कोई वृद्ध नहीं बन जाता। उसके साथ गुण भी आवश्यक है। आज तो तरुणाई में भी सफेद बाल आ जाते हैं। सन्त ज्ञानेश्वर ने १६ वर्ष की अवस्था में ही गीता की रचना की थी और २४ वर्ष की अवस्था में तो समाधि ले ली थी। ये ज्ञानवृद्ध कहलाते हैं। शास्त्रों
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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