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महामन्त्र नवकार
गुरुवाणी-३ निष्ठा पूर्वक एकाग्रता से इसको गिना जाता है तो। ऐसी अनंत शक्ति इस महामन्त्र में रही हुई है।
पहले जीवन में प्रतीति - दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि इस मन्त्र ने ही मुझे बचाया है। अन्त समय में करोड़ों की सम्पत्ति अथवा स्वजन परिवार कोई भी बचाने नहीं आता है। चाहे जैसे भयंकर से भयंकर संकट में भी यही मेरी रक्षा करने वाला है, ऐसा दृढ़ निश्चय जब तुम्हारे मन में जाग्रत होगा तभी उसके चमत्कार जीवन में देखने को मिलेंगे। आज भी इस महामन्त्र के आराधकों के जीवन में चमत्कार देखने और सुनने को मिलते हैं।
नवपद के ध्यान के साथ शुभ विचारों की परम्परा भी आवश्यक है। जिसके जीवन में एक ही भावना रम रही हो कि जगत के जीवों का कल्याण कैसे हो? एक ही चिन्ता हो कि जगत् के जीव सुःखी कैसे हो? वही व्यक्ति पूजनीय बनता है। उसके समागम में आने वाले व्यक्ति को भी सुख की अनुभूति होती है। जैसे इत्र के समागम में आने वाले को सुगन्ध मिलती है या नहीं? चन्दन के समागम में आने वाले को शीतलता मिलती है या नहीं? आज तो तुम स्वयं ही अन्दर-अन्दर जलते रहते हो, तो वहाँ दूसरे को ठण्डक कैसे दोगे? हाथी के चारों तरफ छोटे-छोटे बच्चे घूमते रहते हैं। वे ही बच्चे क्या व्याघ्र के चारों तरफ घूम सकते हैं? नहीं तुम्हे बाघ जैसा क्रूर जीव बनना है? आस-पास में कोई फिर ही न सके। तुम दूसरे को सुखी करने की इच्छा अथवा दूसरे लोग दुःखी न हों ऐसी वांछा करोगे तो जगत् के पुण्य के परमाणु तुम्हारी तरफ आकर्षित होकर
आएंगे। तुम जैसा विचार करोगे वैसे ही परमाणु प्रभावित होकर तुम्हारे पास आएंगे। शुभ विचारों से शुभ विचार आएंगे और तुम्हारा कल्याण करेंगे। साथ ही तुम्हारे सम्पर्क में आने वाले का भी कल्याण होगा। तुम अपने रोम-रोम में दूसरों के लिए शुभ की भावना को भर दो। सर्व मङ्गल का श्लोक प्रतिदिन बोलते हो, किन्तु जीवन में उसका व्यवहार भी हो कि