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महामन्त्र नवकार
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गुरुवाणी-३ भी उत्तम कुल में जन्म देगा। नवकार मन्त्र औषधि का भी काम करता है। आरोग्य भी देता है इसीलिए हमारे मन में स्फुरणा होती है कि मैं इसकी फांकी ले लू.... इस वस्तु का सेवन बन्द कर दूं। इस प्रकार की अन्दर से प्रेरणा होती है। वैसे शरीर को रोग-रहित बनाने की शक्ति भी नवपद के जाप में है। आज की दवाएं तो रोग मिटाने के स्थान पर नए रोगों को आमंत्रित करती है। सचमुच में तो No Medicine is Medicine अर्थात् दवा न लेना ही सबसे बड़ी दवा है। अहमदाबाद शहर में दस कदम चलोगे तो डॉक्टर का साईन बोर्ड नजर आएगा। ऐसा होने पर भी दवाखाने बढ़ते ही जाते हैं। गाँवों में भी डॉक्टरों का धन्धा बहुत अच्छा चलता है। रात-दिन बीमार बढ़ते ही जाते हैं। पहले का जमाना तो ऐसा था कि सौ आदमियों में भी एक आदमी बीमार ढूंढने पर ही मिलता था। आज तो तनिक सिर दर्द हुआ तो तत्काल ही चल दिए दवाखाने । उस युग में तो चाहे जैसा भयंकर बीमार हो तो पहले वृद्ध माँ को पूछता था। बुढ्ढी माँए दवाओं को जानती थी।अन्य मार्ग न मिलने पर ही वैद्य के पास जाना होता था.... इसीलिए तो यह कहावत है - वैद्य, वेश्या ने वकील त्रणे रोकड़ीया, जोशी, डोशी ने वटेमाणु त्रणे फोगटीया। वैद्य के पास जाओगे तो पहले फीस मांगेगा। रुपया होगा तो ही बराबर दवा मिलेगी। वेश्या तो धन देखकर ही आगे का कदम उठाती है। तुम्हारे पास धन होगा तभी खड़ा रहने देती है.... और वकील तो आज तुम देख ही रहे हो कि पहले फीस और फिर केस लड़ने का.... ये तीनों ही नकद काम करते हैं। जबकि पहले बुढ्ढी माएँ और वैद्य निःशुल्क ही उपचार करते थे। जोशी लोग भी पैसा नहीं लेते थे। पथिक से चाहे जब भी रास्ता पूछ सकते थे। आज तो विभक्त परिवार होने के कारण वृद्धाओं की कोई कीमत नहीं रही। इसीलिए तो बीमारियाँ भी बढ़ रही है। भगवान का नाम, सब दवाओं में अमूल्य दवा है।