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महामंत्र नवकार
आसोज सुदि पूनम
जगत् के कल्याण के लिये भगवान् ने करुणापूर्वक हमें धर्म का मङ्गलमय मार्ग बताया है। जैसे सिद्धचक्र का महत्व है वैसे ही सिद्धचक्र का ध्यान करने वाले, उपासना करने वाले श्रीपाल महाराजा का भी उतना ही महत्व है। क्योंकि श्रीपाल पात्र थे। पात्र के बिना धर्म आता नहीं। हमें धर्म प्राप्त करना है, तो पात्र बनना पड़ेगा। जैसे बीज का महत्व है, उसी प्रकार जमीन का भी उतना ही महत्व है। पत्थर पर बीज उगाने से क्या वह उग जाता है? योग्य भूमि में ही बीज उत्पन्न हो सकता है। बरसात का पानी सब जगह एक समान होता है, किन्तु स्वाति नक्षत्र में सीप में गिरा हुआ पानी मोती बन जाता है। पानी के लिए सीप ही पात्र है। सिद्धिचक्र की आराधना के लिए श्रीपाल महाराज पात्र बने तभी इस सिद्धचक्र का महत्व दुनिया समझ सकी। हम केवल धर्म से ही चिपके हुए हैं। पात्र बनने की कभी भी कोशिश नहीं की। पात्र बनने के लिए मनुष्य को महान् बनना पड़ता है, सज्जन बनना पड़ता है।
१०० अथवा १००० का नोट छोटे बालक के हाथ में दिया जाए और वही नोट किसी बड़े व्यक्ति के हाथ में दिया जाए, दोनों के बीच में कितना अन्तर पड़ता है। छोटे बालक के हाथ में नोट एक कागज का टुकड़ा होता है। उसकी कोई कीमत नहीं होती। तुम्हारे मन में इस नोट के लिये कितना स्थान है? क्योंकि तुम इसकी कीमत समझ चुके हो। उसी प्रकार जो नवपद का मूल्य समझ जाएगा वही सच्चे अर्थ में आराधना कर सकेगा। तीन-तीन जन्मों को सुधारने वाला....!
नवकार मन्त्र तुम्हारे तीन-तीन जन्मों को सुधार देगा। यह मन्त्र इस लोक में सुख-शान्ति देगा। परलोक में सद्गति देगा और उसके बाद