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________________ १७२ सिद्धचक्र का ध्यान गुरुवाणी-३ कोऽरुक् - अर्थात् निरोगी कौन रहता है। चरक ने उत्तर दिया - हितभुक् अर्थात् जो पथ्य पूर्वक खाता है वह। पक्षी ने पुनः पूछा - कोऽरुक् । अर्थात् निरोगी कौन है। चरक ने कहा - मितभुक् अर्थात् सीमित खाने वाला। भूख लगने पर ही खाने वाला। आज तो भूख हो या न हो.... किन्तु कई प्रकार से संस्कारित करके चटपटा करेगा और लोलुपता के साथ खाने बैठेगा। पक्षी ने तीसरी बार पूछा - कोऽरुक् । चरक ने उत्तर दिया - अशाकभुक् - अर्थात् सब्जी रहित खाने वाला। इन तीन बातों की पालना करने वाला निरोगी रहता है। जगत् में तीन तत्त्व महान हैं। देवतत्त्व, गरुतत्त्व और धर्मतत्त्व। ये तीनों ही तत्त्व यदि जीवन के साथ जड़ जाएं तो जीवन धन्य/सफल बन जाए। देवतत्त्व और धर्मतत्त्व को समझाने वाले गुरु होते हैं 'देव कष्ट गुरुस्त्राता गुरौ मष्ट न कञ्चन' देव मष्ट हो गये तो गुरु बचा लंग परन्तु यदि गुरु रुष्ट हो गये तो कोई भी बचा नहीं सकता। गुरुतत्त्व के द्वारा ही समस्त गुणों की प्राप्ति हो सकती है। तीर्थंकर परमात्मा का यह सम्पूर्ण शासन गुरुतत्त्व पर ही चल रहा है।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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