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गुरुवाणी-३
सिद्धचक्र का ध्यान करे? इस कारण उसने अपने धन का सदुपयोग करने का निश्चय किया। दीन-दुःखियों में खूब व्यय करने लगा। इसमें भी दुष्काल जैसा समय आने पर उसने स्वयं के घर के द्वार खुले कर दिये। साधु सन्तों की भी उल्लास से भक्ति करता है। इस सब सत्कार्यों से उसने महापुण्य का उपार्जन किया। वहाँ से मृत्यु प्राप्त कर वह देवलोक में जाता है। उस देवलोक में भी सुखों में लिप्त न होकर एक ही भावना रखता है कि भगवान मुझे तुम्हारा शासन मिले। उत्तम संस्कारी कुल में मेरा जन्म हो। ऐसी उच्च भावना रखता हुआ वह वहाँ से च्युत होकर राजन् तुम्हारे नगर में एक सेठ के यहाँ जन्म लिया है। उस महापुण्यशाली के प्रभाव से ही तेरी नगरी दुष्काल की आपत्ति से बच गई है। देशना पूर्ण होने पर राजा परिवार के साथ उस सेठ के यहाँ जाता है। पालने में झूलते हुए पुत्र को हाथ में लेकर कहता है - हे जगत् के आधार! दुर्भिक्षभञ्जन तुम्हे मेरा नमस्कार हो । वास्तव में इस राज्य के सच्चे राजा तो तुम ही हो। उसका धर्मनृप नाम रखता है और उसका राज्याभिषेक करता है। उसके पुण्य प्रभाव के कारण ही सारा राज्य रोगादि व्याधियों से मुक्त हो जाता है। अन्त में वह राज्य का त्याग कर दीक्षा ग्रहण करता है और उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करता है। देखो! व्युत्सर्ग ने कैसा काम किया। आज हमारे जीवन में व्युत्सर्ग है ही नहीं! न तो खाने में व्युत्सर्ग है और न ही वस्त्रपात्र आदि सामग्री में.... जो आता है उसे डालो पेट में.... और जो आता है उसे डालो पेटी में। शरीर और मन को निरोग रखने के लिए तप यह अमोघ दवा है। चरक ऋषि की परीक्षा
चरकसंहिता ये आयुर्वेद का सर्वोत्तम ग्रन्थ है। चरक नाम के ऋषि ने ही इसकी रचना की है। चरक का कथन प्रमाण भूत है या नहीं, जानने के लिए एक बार आयुर्वेद के देवों ने पक्षी का रूप धारण कर चरक की परीक्षा की। चरक जहाँ बैठे हुए थे, वहाँ आकर पक्षी बोला -