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________________ गुरुवाणी - ३ प्रश्न का निराकरण सिद्धचक्र का ध्यान १६९ कुछ समय बाद उस नगर में युगन्धर नाम के ज्ञानी गुरु महाराज पधारे। राजा और प्रजा सभी लोग आचार्य भगवान की देशना सुनने के लिए गए। देशना के अन्त में राजा ने पूछा - भगवन् ! बहुत अरसे से मेरे मन में एक प्रश्न घूम रहा है, आप उसका निराकरण करिए.... हमारे नैमित्तिक का नैमित्त ज्ञान कभी भी असत्य नहीं हुआ किन्तु इस समय किस कारण से गलत हुआ? गुरु महाराज कहते हैं कि नैमित्तिक का ज्ञान सच्चा है किन्तु तुम्हारे नगर में एक महापुण्यवान व्यक्ति ने जन्म लिया है। मानो स्वयं पुण्य ही देह धारण करके आया हो ! उसके प्रभाव से सारे देश से दुष्काल दूर हो गया है। राजा को आश्चर्य हुआ। उसने गुरु महाराज से पूछा - हे भगवन् ! उसने ऐसा कितना पुण्य बाँधा होगा कि जिसके कारण इतनी बड़ी आपत्ति टल गई? यह पुण्य उसने कैसे बाँधा ? गुरु महाराज कहते हैं - सुनो..... किसमें से पुण्य बाँधा एक नगर में एक बालक रहता था । उसके माँ-बाप मर गए थे। अनाथ बालक भटकता हुआ, मार खाता हुआ भीख माँगकर स्वयं का पेट भरता था । भिक्षा मे प्राप्त जैसे-तैसे पदार्थ खाने से उसके शरीर में कोड़ फैल गया था । कोड़ यह चिपकने वाला रोग गिना जाता है .... इसके कारण सब लोग उसका तिरस्कार करने लगे.... बेचारा जाए भी तो कहाँ ? ऐसे में उसने किसी साधु महात्मा को देखा। उसको विश्वास हुआ कि ये मेरी बात को अच्छी तरह सुनेंगे। इसीलिए उसने साधु महाराज से कहा भगवन्! मरे ऊपर उपकार कीजिए। मेरा सब लोग तिरस्कार करते हैं कोई भी आंगन में मुझे खड़ा नहीं रहने देता। रोटी भी नहीं देता । भगवन् कोई औषधि बताइये जिससे कि यह मेरा रोग मिट जाए। जगत् में साधुसन्त ही ऐसे होते हैं कि जो दुःखीजनों के दुःख की बात सुनते हैं और उसकी संभाल भी लेते हैं । सुखी वर्ग तो स्वयं के सुख में डूबा हुआ रहता
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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